डा. सूर्य प्रकाश अग्रवाल
दिलेर समाचार, भारत के वित्त मंत्राी श्री अरुण जेटली के द्वारा एक फरवरी 2018 को लोकसभा में पेश आम बजट 2018 आम नागरिक के नजदीक साबित हो रहा है। आम बजट में जिस प्रकार 10 करोड़ अति गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये के व्यय की सीमा तक स्वास्थ्य बीमा की सुविधा लागू की जा रही है वह पूरे देश की आर्थिक व्यवस्था में एक गेम चेन्जर साबित होगी क्योंकि गरीब लोग बीमारी के कारण साहूकार के ब्याज के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं और उसकेे परिवार की कई पीढि़यों तक ब्याज का रुपया चुकाना पड़ता है।
सरकार को बीमा की व्यवस्था ठीक प्रकार से करनी होगी वरना तो इसमें भ्रष्टाचार भी व्यापक व बड़े पैमाने पर होना सम्भव होगा। बीमा का लाभ लेने के लिए फर्जी गरीब, कई प्रकार के दलाल, कई प्रकार के चिकित्सक व उनके अस्पताल सामने आ सकते हैें। इसलिए गरीबी की पहचान निष्पक्ष रुप से हो, यह बड़ी समस्या सरकार के सामने हो सकती है। आयकर में परिवर्तन करके तथा कर छूट की सीमा 5 लाख रुपये (42,000 रुपये मासिक) करके सरकार मध्यम वर्ग को भी राहत दे सकती थी। आयकर से ही देश में कालाधन उत्पन्न हो रहा है।
आयकर को सरल बनाया जाना चाहिए तथा अधिक बच्चों वाले परिवार पर अधिक कर लगाने की युक्ति की गई होती तो देश में बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगाई जा सकती थी क्योंकि बढती जनसंख्या आज देश की प्रमुख समस्या बन चुकी है परन्तु कोई भी राजनीतिक दल बढ़ती जनसंख्या को रोकने के उपायों के बारे में नहीं सोच रहा है जबकि बढ़ती जनसंख्या एक विकराल रुप धारण करके आर्थिक विकास को रोककर जहां प्रति व्यक्ति आय को कम कर रही है, वहीं बेरोजगारों की फौज भी बढ़ रही है। आज कोई भी राजनैतिक दल जनसंख्या को लेकर सचेत नहीं है अपितु इसको अछूत महसूस कर रहा है।
दूसरी समस्या देश में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को गरीब, पिछडा दिखाने में गौरव महसूस कर रहा है जो ठीक नहीं है। इस आम बजट में आय की एक क्रीमी लेयर निश्चित स्तर पर तय की जानी चाहिए थी। आर्थिक मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए, न ही लोगों में भिक्षावृत्ति विकसित की जानी चाहिए। देश में स्थायी लाभ किसी जाति, धर्म, समुदाय, वर्ग को देना देश में वैमनस्यता, ईर्ष्या, अपराध को जन्म देते हैं। कुल मिला कर आम बजट 2018 एक ऐतिहासिक बजट है जिसमें देश की सभी गरीब जनता का ध्यान रखा गया है। गरीबी अब कब हटती है, देखना केवल यही है?।
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