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आपके लिए बेहद जरूरी जानना की आखिर क्यों जीएसटी की दरें रखी गई है अलग-अलग

Posted at: Aug 8 , 2017 by Dilersamachar 9638
दिलेर समाचार, पाठकों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पूर्णकालिक निदेशक व कंपनी सचिव श्री बी.जे. माहेश्वरी जी। श्री माहेश्वरी पिछले 33 वर्षों से कंपनी कानून मामलों, कर (प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष) आदि मामलों को देखते रहे हैं। प्रभासाक्षी के लोकप्रिय कॉलम 'आर्थिक विशेषज्ञ की सलाह' में इस सप्ताह जानिये जीएसटी से संबंधित पाठकों के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर। प्रभासाक्षी का प्रयास जीएसटी संबंधी और प्रश्नों को आगामी अंकों में लेने का रहेगा।। यदि आप 20 लाख का सालाना व्यापार कर रहे हैं तो आपको जीएसटी देना होगा।। जीएसटी एक ही बार देना होगा, जिसका विभाजन दो भागों में किया गया है।
एक भाग प्रदेश सरकार/केन्द्र शासित प्रदेश को जायेगा और दूसरा भाग केन्द्र सरकार को जाता है, जो भाग प्रदेश सरकार को जायेगा उसे एसजीएसटी या यूटीएसटी कहते हैं और जो केन्द्र सरकार को जायेगा उसे सीजीएसटी कहते हैं। यह विभाजन रेवेन्यू एपोरशनमेन्ट के लिये किया गया है जिससे दोनों सरकारों की वित्तीय व्यवस्था बनी रहे।
प्रत्येक व्यापारी को जीएसटीआर−1 रिटर्न आऊटवार्ड सप्लाई के लिये फाईल करना होगा जिसमें वह महीने में हुई बिक्री का पूरा ब्यौरा देगा और कितना टैक्स वसूल किया उसका ब्यौरा भी देना होगा। उसी प्रकार जीएसटीआर−2 रिटर्न में सप्लायर से आये हुये माल पर लगा हुआ टैक्स का ब्यौरा मिलेगा और इन रिटर्न के माध्यम से सरकार टैक्स पर ट्रैक रख पायेगी। आपने अनरजिस्टर्ड डीलर से कोई सर्विस ली है तो एक सेल्फ इनवायस बनाना होगा और अगर किसी पार्टी ने सेल्स के विरूद्ध एडवान्स लिया है तो उस पर एडवान्स रिसीप्ट निर्गत करनी होगी। ये सारे दस्तावेजों की जरूरत रिटर्न फाईल करने में होगी। दरें बीच में बढ़ाई जा सकती हैं लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। इसमें जीएसटी काऊन्सिल की मंजूरी आवश्यक होगी।
जीएसटी की दर अलग−अलग इसलिये है क्योंकि आदमी की जरूरत की चीजों पर टैक्स कम है और जो कम्फर्ट की चीजें हैं उसमें टैक्स ज्यादा है जो लक्सरी गुडस हैं उस पर सबसे ज्यादा टैक्स है। ऐसा करने से व्यवस्था भी बनी रहती है और सामान्य आदमी को इसका भार भी महसूस नहीं होता है और मुद्रास्फीति भी नियन्त्रण में रहती है।
 
− सरकार ने कोई साफ्टवेयर उपलब्ध नहीं कराया है परन्तु बाजार में कई प्रकार के साफ्टवेयर वेन्डर उपलब्ध हैं।
जीएसटी लगने से इन्श्योरेन्स में भी टैक्स 15 प्रतिशत से 18 प्रतिशत कर दिया गया है परन्तु यह सभी पॉलिसी पर समान नहीं है और इसका मिला−जुला असर रहेगा। आप पुराने स्टाक पर जो वैट पिछले 12 महीने में लगा उसका इन्पुट टैक्स क्रेडिट ले सकते हैं और जो भविष्य में बिक्री पर जीएसटी देना होगा उसमें एडजस्ट कर सकते हैं।जीएसटी आने से फर्स्ट क्लास ए.सी. ट्रेन का किराया थोड़ा बढ़ सकता है और फ्लाईट की इकोनामी क्लास का टिकट थोड़ा सस्ता हो सकता है लेकिन बिजनेस क्लास का टिकट महंगा हो सकता है।   कर से जुड़े हर मामले चूँकि भिन्न प्रकार के होते हैं इसलिए संभव है यहाँ दी गयी जानकारी आपके मामले में सटीक नहीं हो इसलिए अपने विशेषज्ञ की सलाह भी ले लें।

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