दिलेर समाचार, राकेश सैन: अत्याचारी व धर्मांध मुगल शासक औरंगजेब को ‘जिंदा पीर’ व अकबर को ‘अकबर दी ग्रेट ’ लिखते आ रहे देश के वामपंथी बुद्धिजीवियों व सेक्यूलरों ने लंपट अलाउद्दीन खिलजी के रूप में अपना नया देवता ढूंढ लिया है। लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर पैदा हुए विवाद में नया सुर मिलाते हुए देश के बुद्धिजीवियों ने कहना शुरु कर दिया है कि अगर पूरी फिल्म में किसी से अन्याय हुआ है तो वह है अलाउद्दीन खिलजी जो वास्तव में महान शासक, किसान व मजदूर हितैषी, बाजार व्यवस्था को सुचारु बनाने वाला और भी न जाने कैसे-कैसे सुधार करने वाला था।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर नजफ हैदर दावा करते हैं कि बाजार से संबंधित अलाउद्दीन खिलजी की नीतियां बहुत मशहूर हैं। उन्होंने न सिर्फ बाजार को नियंत्रित किया था बल्कि चीजों के दाम भी तय कर दिए थे। इंटरनेशनल जर्नल आफ एप्लाइड सांइसेज में प्रकाशित इतिहास की प्राध्यापिका रुचि सोलंकी और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन के प्राध्यापक डाक्टर मनोज कुमार शर्मा के एक लेख के मुताबिक अलाउद्दीन खिलजी ने अपने दौर में हर चीज के दाम तय कर दिए थे। एक उच्च नस्ल का घोड़ा 120 टके में बिकता था, दुधारू भैंस 6 टके में और दुधारू गाय 4 टके में बिकती थी। गेहूं, चावल, ज्वार आदि के दाम भी निश्चित कर दिए थे। तय दाम से अधिक पर बेचने पर सख्त कार्रवाई की जाती थी। उस जमाने के इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी (1285-1357) के मुताबिक खिलजी ने दिल्ली में बहुखंडीय बाजार संरचना स्थापित की थी जिसमें अलग-अलग चीजों के लिए अलग-अलग बाजार थे।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के अध्यक्ष और मध्यकालीन भारत के विशेषज्ञ प्रोफेसर सैयद अली नदीम रजावी कहते हैं खिलजी वंश से पहले दिल्ली पर शासन करने वाले सुल्तान जिनमें इल्तुलमिश, बलबन और रजिया सुल्तान भी शामिल हैं, अपनी सरकार में स्थानीय लोगों को शामिल नहीं करते थे। सिर्फ तुर्कों को ही अहम पद दिए जाते थे लेकिन अलाउद्दीन खिलजी ने हिंदुस्तानी लोगों को भी शासन में शामिल करने का सिलसिला शुरू किया। इसे खिलजी क्रांति भी कहा जाता है। प्रोफेसर रजावी कहते हैं, जिस गंगा-जमनी तहजीब के लिए हिंदुस्तान मशहूर है और जिसे बाद में अकबर ने आगे बढ़ाया, उसकी शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने ही की। खिलजी के सबसे बड़े कामों में से एक कृषि सुधार थे जो उन्होंने किए थे। खिलजी ने दिल्ली सल्तनत के दायरे में आने वाले इलाके की जमीनों का सर्वेक्षण करवाकर उन्हें खलीसा व्यवस्था में लिया था। प्रोफेसर साहिब कृषि व्यवस्था में सुधार व भारत को मुगलो के हमलों से रक्षा के लिए खिलजी के प्रतिशत-शत भाव रखते हैं।
वामपंथी इतिहासकार गलत नहीं हैं, खिलजी ने बाजार व्यवस्था, कृषि व्यवस्था में सुधार के अनेकों काम किए परंतु इतिहासकार इस तथ्य को छिपाते हैं कि इन सुधारों का उद्देश्य जनकल्याण नहीं बल्कि भारत पर विजय प्राप्त करना था जो एक बड़ी विशाल सेना के बिना संभव नहीं था। खिलजी इतनी बड़ी सेना को पूरा वेतन दे नहीं पाता था और सैनिकों को लाभ देने के लिए उसने बाजार को नियंत्रित किया। इसमें उसकी महानता कम और तत्कालिक आवश्यकता अधिक झलकती है। रही बात जमीन सुधारों की तो इतिहास में शायद ही ऐसा कोई शासक रहा होगा जिसने उस समय आय के सबसे बड़े स्रोत कृकृषि व भू-व्यवस्था में सुधार के प्रयास न किए हों।
वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी को क्रूरता और वासना का दूसरा नाम कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। केंद्रीय मंत्राी उमा भारती ने उचित ही कहा है कि जिस तरह से आज के एकतरफा लंपट प्रेमी असफल होने पर युवतियों पर तेजाब फेंकते हैं, लगभग उसी प्रवृत्ति का मालिक था खिलजी। उसने चित्तौड़ की रानी पद्मावती के साथ लगभग वैसा ही व्यवहार किया परंतु सती पद्मिनी ने मौत को गले लगाया और उसकी वासना को स्वीकार नहीं किया। खिलजी ने अपने सगे चाचा जो कि उसका ससुर भी था, की पवित्रा माह रमजान में निर्दयतापूर्ण हत्या कर दी। केवल इतना ही नहीं, उसके कटे सर के साथ परेड भी की। वो हिन्दुओं का परम शत्राु था और गर्व से कहता था कि मैंने हिन्दुओं का बुरी तरह से मानमर्दन किया है और वो चूहों की भांति अपने बिलों में घुस गए हैं। दक्षिण में देवगिरि का यादव साम्राज्य हो या गुजरात का गुर्जर राज, उसके आक्रमणों में केवल अपना राज्य बढ़ाने की ही मंशा नहीं थी बल्कि उसने मंदिरों को पददलित किया, देव प्रतिमाओं को अपमानित किया, हजारों की संख्या में निरपराध हिन्दू नागरिकों का जनसंहार किया।
युद्ध के नियमों को तो वैसे कभी किसी विदेशी हमलावर ने नहीं माना पर गुजरात के राजा कर्णदेव बघेला पर आक्रमण करते समय सारी मर्यादाएं भूलते हुए रात में आक्रमण किया। सोते हुए आम लोगों को क्रूरतापूर्वक मारा गया। इसी युद्ध में राजा कर्णदेव की सुन्दर पत्नी कमलादेवी भी भागते हुए पकड़ ली गयी जिसके साथ बाद में दुव्र्यवहार किया गया। महमूद गजनवी द्वारा तोड़ा गया सोमनाथ मंदिर, जिसे हिन्दुओं ने फिर से उसी शान के साथ खड़ा कर लिया था, को फिर से नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया और मंदिर की मूर्तियों को अलाउद्दीन ने अपने सिंहासन की सीढ़ियों में लगवा दिया।
हिन्दुओं को लेकर खिलजी की सोच का अंदाज केवल इस एक बात से लगाया जा सकता है कि उसके द्वारा नियुक्त प्रधान काजी का मानना था कि यदि कोई मुसलमान थूकने की इच्छा व्यक्त करता है तो हिन्दू को आगे बढ़कर अपना मुँह हाजिर करना चाहिए। खिलजी ने कमलादेवी की शह पर राजा कर्णदेव से हुई उसकी बेटी देवलदेवी को भी देवगिरि को हराकर अपहृत करा लिया, बलात् धर्मपरिवर्तन कर उसका विवाह अपने बेटे खिज्रखां से कर दिया। वही खिज्रखां जिसके नाम पर, हजारों सखियों संग रानी पद्मिनी के जौहर के बाद, 30000 राजपूतों का कत्लेआम कर, चित्तौड़ के किले का नाम खिज्राबाद कर दिया था खिलजी ने। अपने सेनापति मलिक काफूर के साथ समलैंगिक संबंध रखने वाले व धर्म के नाम पर अत्याचार करने वाले किसी लंपट शासक को ’साम्राज्यवादी इतिहासकार’ ही महान बता सकते हैं, कोई ईमानदार इतिहासवेत्ता नहीं।
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