दिलेर समाचार, नई दिल्ली। राफेल सौदे को लेकर अपने हमले की धार तेज कर रही कांग्रेस ने अब बैंक या संप्रभु गारंटी की छूट देने से लेकर विमान का बेंचमार्क दाम बढ़ाने के मसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे जिम्मेदार ठहराया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि नए तथ्यों से साफ है कि फ्रांस सरकार ने संप्रभु गारंटी नहीं दी और यह सौदा दो सरकारों के बीच नहीं है।
कांग्रेस ने कुछ नए सबूतों के साथ दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा मंत्रालय, रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) और कानून मंत्रालय की राय दरकिनार कर राफेल की बेंचमार्क कीमत तीन अरब यूरो बढ़ाने से लेकर कई नियमों की अवेहलना की। पार्टी ने अपने सबूतों के पुख्ता होने के दावे के साथ राफेल की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग फिर उठाई।
कांग्रेस अध्यक्ष ने ट्वीट में कहा कि प्रधानमंत्री इस सौदे को भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच बताते रहे हैं, मगर राफेल से जुड़े नए तथ्य बता रहे हैं कि फ्रांस सरकार ने केवल आश्वासन की चिट्ठी दी है। यह संप्रभु या बैंक गारंटी नहीं है और इसे दो सरकारों के बीच समझौता नहीं मान सकते।
राहुल के इस वार को कांग्रेस मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस में और तीखा करते हुए कहा कि बैंक गारंटी ही नहीं, चौकीदार ने राफेल के दाम में तीन अरब यूरो यानी करीब 22,743 करोड़ रुपए बढ़ा दिए। इसका साक्ष्य होने का दावा करते हुए उन्होंने उस समय रक्षा मंत्रालय में वित्त मामलों के प्रमुख अधिकारी रहे सुधांशु मोहंती का हवाला देते हुए कहा कि राफेल लड़ाकू विमान का बेंचमार्क मूल्य 5.2 अरब यूरो यानी 39,422 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 8.2 अरब यूरो यानी 62,166 करोड़ रुपए किया गया।
कीमत बढ़ाने पर नेगोशिएटिंग टीम के बीच भयंकर विवाद हुआ। इसके बाद फाइल तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के पास गई तो उन्होंने भी बढ़ी कीमत नहीं मानी। रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) को भी यह कीमत स्वीकार नहीं थी। इन असहमतियों के विपरीत प्रधानमंत्री ने खुद रक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) में राफेल की बढ़ी कीमत को मंजूरी दिलाई। साफ है कि किसे फायदा पहुंचाने के लिए यह किया गया।
सुरजेवाला के मुताबिक, प्रधानमंत्री सवालों के घेरे में हैं और राफेल बड़ा घोटाला है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के राफेल सौदे को नेगोशिएट करने के सबूत होने का दावा करते हुए उन्होंने सवाल उठाया कि वह किस हैसियत से इसमें शामिल हुए जबकि वह आधिकारिक टीम का हिस्सा नहीं थे।
बैंक या संप्रभु गारंटी की छूट देने में प्रधानमंत्री की भूमिका के पुख्ता प्रमाण का दावा करते हुए सुरजेवाला ने कहा कि कानून मंत्रालय ने नौ दिसंबर, 2015 को बैंक गारंटी में छूट देने से मना करते हुए फाइल ऊपर भेज दी। पर्रिकर ने भी कानून मंत्रालय से असहमत हुए बिना सात मार्च, 2016 को फाइल आगे भेज दी।
एयर एक्यूजिशन विंग ने 18 अगस्त, 2016 को साफ कहा कि बैंक या फ्रांस सरकार की संप्रभु गारंटी के बिना राफेल नहीं खरीद सकते। कानून मंत्रालय ने 23 अगस्त, 2016 को अपनी पुरानी राय दोहराई। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री ने कानून मंत्रालय, रक्षा मंत्री और एयर एक्यूजिशन विंग की राय दरकिनार कर 24 अगस्त, 2016 को सीसीएस से बैंक गारंटी की छूट दिला दी। इतना ही नहीं, सौदे पर विवाद की स्थिति में मध्यस्थता भारत में करने की शर्त को बदलते हुए इसे स्विट्जरलैंड किया गया।
सुरजेवाला ने कहा कि मध्यस्थता समझौता भी फ्रांस सरकार की जगह दसौ कंपनी के साथ किया गया जो साफ दर्शाता है कि राफेल सौदे में राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ किया गया है।
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