दिलेर समाचार, स्वाती। भारतीय रेल की समस्याओं पर अगर हम विचार करते है, तो देखते कि एक निचले तबके के भारतीय यात्रियों को गहरी समस्याओं से जूझना पड़ता है। आज हम देख सकते है कि पुरातन काल से अब तक रेल की हालत कुछ इस तरह से है कि सामान्य कोच में जहाँ खड़े होने की भी जगह नही मिलती वही सभी ट्रेनों में लगभग आधी से ज्यादा कोच स्लीपर क्लास और वातानुकूलित के होते है। भारतीय रेल के लिए निवेश का अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पाना भी एक स्थायी समस्या बन गया है रेलवे की सभी समस्याओं की जड़, पैसे की कमी है। इस वजह से न तो बुनियादी ढांचा मजबूत हो रहा है और न ही घोषणाओं को सही तरीके से लागू किया जा रहा है। भारतीय रेल के लिए जिस तरह का तकनीकी उन्नति अनिवार्य हो गया है, वह पैसे की कमी के कारण नहीं हो पा रहा है।
पैसे की समस्याओं से जूझ रहे गरीब और सामान्य व्यक्तियों को ही इस धक्का मुक्की और जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दुनिया की सबसे बड़ी रेल, भारतीय रेल।
लेकिन रेलवे की अनगिनत समस्याओं से न सिर्फ यात्रा बल्कि यात्रा से पहले की तमाम कोशिशें काफी जटिल हैं। जहाँ एक तरफ साधारण डब्बो में अनगिनत यात्री सफर करते है जिसकी कोई सीमा नही है वही दूसरी तरफ स्लीपर कोच और एयर कंडीशनर डब्बों में रिज़र्व सीट के लिए यात्रियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
सेवाओं का घटिया स्तर , रेलवे एक तरफ ये वादा करती है की अब यात्री को रिजर्व सीट मिलेगा, रिजर्व सीट ना मिलने पर दूसरे ट्रेन में रिजर्व सीट उपलब्ध कराया जाएगा, लेकिन अगर वास्तविकता को देखा जाए तो ऐसा देखने को नही मिलता है। अगर यात्रियों को आरक्षित सीट उपलब्ध करने के लिए रेलवे डुप्लीकेट ट्रेन की व्यवस्था कर भी लेती है तो क्या निर्धारित समय पर यात्रियों को उसके डेस्टिनेशन पर पहुंचा पाएगी। अब तक ये देखा गया है कि जब भी कोई त्योहार आता है तो मौजूद ट्रेन के अलावा रेलवे की तरफ से यात्रियों के लिए सुविधा ट्रेन की उपलब्धि करायी जाती है। लेकिन वह सुविधा-ट्रेन निर्धारित समय से भी बहुत ज्यादा समय लेती है यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुंचाने के लिए। रेलवे के सही तरीके से काम न करने की वजह से राजधानी,शताब्दी एक्सप्रेस जैसे कुछ रेलगाड़ियों को छोड़कर बाकी ट्रेन में ना सफाई की सही व्यवस्था होती है ना ही निर्धारित मूल्य के अनुसार कैटरीन के खाने का क्वालिटी, रेल में सफर करने वालों की यह सबसे बड़ी समस्या है।
देश की परिवहन प्रणाली की रीढ़ है भारतीय रेल। लाखों यात्री रोज सफर करते है जिसमे से बहुत ऐसे यात्री होते है जो बाद की यात्रा सुविधा का इस्तेमाल करते हैं, पहली ट्रेन के लेट हो जाने के वजह से अगर बाद वाली ट्रेन छूट जाती है तो रेलवे किसी भी तरह की कोई ज़िम्मेदारी नही लेती है। उस यात्रा में किसी का महत्वपूर्ण इंटरव्यू छूट जाता है, कोई इमरजेंसी मेडिकल रोगी व्यक्ति अस्पताल नही पहुँच पाता है, तो कोई अकेली यात्रा कर रही औरत या बुजुर्ग ट्रेन लेट की वजह से रात को मुश्किलों का सामना करते है, ऐसी बहुत सारी स्थिति पैदा होती है जिसकी ज़िम्मेदारी रेलवे नही लेती है। अगर बात जीवन की हो तो ये समस्या छोटी दिखती है। सुरक्षा संबंधी जो उपकरण दूसरे देशों में सालों पहले से इस्तेमाल किए जा रहे हैं वे भारत में अब भी इस्तेमाल नहीं किए जा रहे है, दुर्घटनाएँ लगातार बढ़ती ही जा रही है l रेलवे का ध्यान हादसे की मूल वजहों की ओर नहीं है, वैसे, मूल वजह तो जग जाहिर हैl पिछले कुछ महीनों में रेल दुर्घटना की संख्या में कमी आयी है, लेकिन आज भी प्रतिवर्ष 100 से अधिक रेल दुर्घटनाएँ घटित होती हैं। लाखों की तादाद में लोगो की मृत्यु होती है जिसका किसी के पास कोई जवाब नही होता। हर बार किसी बड़े हादसे के बाद कुछ कर्मचारियों पर इसकी जिम्मेदारी डालकर पूरे मामले को दबा दिया जाता है। हादसों की मूल वजहों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता, अफसरशाही में उलझी रेलवे की इस समस्या का शायद सरकार के पास कोई समाधान नहीं है।
ये भी पढ़े: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच का आदेश, उचित बेंच करे सुनवाई
Copyright © 2016-24. All rights reserved. Powered by Dilersamachar