मंगल का मकर राशि में वक्री होना और वह भी केतु के साथ किसी बड़े अनिष्ट की अशंका की और इंगित करता है । मगल मकर राशि में उच्च का होता है परन्तु उच्च का होकर वक्री होना यह कभी कभी ही होता है मंगल प्रत्येक 18 महीने में एक बार उच्च का होता है यहां विशेष यह है कि उच्च का होकर वक्री 1971 में हुआ था उससे पहले 1939 में उच्च का होकर वक्री हुआ था ।
मंगल ग्रह जीवन मे ताकत, मर्दानगी, ऊर्जा, उत्साह, मजबूत मानसिक स्थति के कारक व व्यक्ति को जूझारू बनाते हैं। कुंडली मे मंगल मेष एवं वृश्चिक राशि के स्वामी, सूर्य, चंद्रमा व बृहस्पति के मित्र, बुध व केतु के साथ इनका शत्रुवत संबंध है। शुक्र और शनि के साथ इनका संबंध तटस्थ है। मंगल मकर राशि में उच्च व कर्क राशि में नीच के माने जाते है। मंगल दोष से पीड़ित जातक को अपने वैवाहिक जीवन में कलह, कर्ज, सम्पत्ति, वाहन व क़ानूनी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कुछ ज्योतिषी कुंडली मे केवल मंगल ग्रह से ही मांगलिक दोष / मंगल दोष / अंगकारक दोष का निर्धारण करते है। परन्तु मंगल गृह का प्रभाव जन्मपत्री मे उसके साथ बैठे व उस पर पड़ने वाली अन्य ग्रह की दृष्टि से तय की जाती है।
उपाय.. मंगल ग्रह नीच का होने पर मंगलवार को लाल वस्तुओ का दान व मंगल ग्रह कमजोर होने पर मंगलवार व्रत, हनुमान जी आराधना, तीन मुखी नेपाली रुद्राक्ष, इटेलियन मूंगा रत्न धारण व बादाम भिगो कर रोज सुबह खाने चाहिए।
वर्तमान में मंगल मकर राशि में गोचर कर रहे हैं। 27 जून 2018 को मध्यरात्रि के पश्चात 2 बजकर 35 मिनट पर मंगल की चाल में बदलाव होगा। अपनी उच्च राशि मकर में विचरण कर रहे मंगल इस समय से उल्टी चाल चलने लगेंगे यानि मंगल वक्री होकर गोचर करने लगेंगें। इसका प्रभाव यह होगा कि मंगल के उच्च होकर गोचर करने से जिन्हें उम्मीद की किरण नज़र आने लगी थी उनके लिये फिर से कुछ समय के लिये निराशा के बादल उमड़ घुमड़ कर आ सकते हैं।
मंगल का वक्री होना ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक बड़ी घटना है। क्योंकि मंगल की चाल से ही मंगल व अमंगल का विचार किया जाता है। मंगल ऊर्जा के कारक माने जाते हैं। स्वभाव में अहंकार की, क्रोध की भावना बढ़ सकती है। नकारात्मकता हावी होने का प्रयास कर सकती है।
इस बड़ी घटना को इतिहास के गर्भ में टटोलने का प्रयास करते है तो पाते है कि सन 1939 में मंगल उच्च के होने के बाद वक्री हुए थे और तब इस विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध का मुंह दंखना पड़ा था। और इसका परिणाम यह हुआ कि हिटलर और नाजी के कारण जर्मनी को विभाजन देखना पडा था । दूसरी घटना जब 1971 में मंगल उच्च के होने के बाद वक्री हुए तब भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ और परिणामस्वरूप पाकिस्तान का विभाजन हुआ और नया देश बांग्लादेश अस्तित्व में आया वर्तमान में भी परिस्थिति वही है मंगल उच्च के है और वक्री भी है और केतु के साथ है और राहू पर पूर्ण दृष्टि रखते है और राहू भी मंगल पर पूर्ण दृष्टि रखते है जो अंगारक योग का सृजन करते है ।
मंगल को भौम भी कहते है या भूमि पुत्र भी कहते है वह जब उच्च का होता है तो वह संपूर्ण शक्ति के साथ अपने शुभाशुभ फल जगत में देता है परन्तु जब वह उच्च का होकर वक्री होता है तो उसके शुभाशुभ फलों में अत्यधिक न्यूनता आ जाती है। केतु विग्रहकारी है अतः किसी देश के टूटने की संभावना प्रबल है कोई देश दो भागों में विभक्त हो सकता है । मंगल , चंद्रमा के नक्षत्र श्रवण में उच्च के होकर वक्री होंगे इस समय केतु भी श्रवण नक्षत्र में ही होंगे। यह स्थिति प्राकृतिक विपदा, तूफान के साथ वृष्टि, सामुद्रिक तूफान, यातायात की दुर्घटना, आगजनी, रोग एवं उपद्रव से जन एवं धन दोनो की हानि होगी। इस समय ज्वालामुखी एवं भूकंपन की भी संभावना है । कर्क राशि उत्तर दिशा की स्वामी होती है और मकर राशि पश्चिम दिशा की स्वामी होती है अतः इन दिशाओ में ग्रह स्थिति अपने रौद्ररूप में रहेगी । प्रकृतिक विपदा , बाढ सामुद्रिक क्षैत्र में अग्नि का प्रयोग एवं बडे राजनैतिक उथल पुथल का समय रहेगा । यह समय अगस्त के अंत तक रहेगा । जुलाई से अगस्त तक सूर्य भी इस प्रभाव में रहेंगे । भारत के लिये भी समय अनुकूल नही परन्तु भारत के प्रधानमंत्री मंगल प्रभावी है और वृश्चिक राशी से मंगल पराक्रम में रहेंगे तो वे यहां अपने पराक्रम का लोहा पूरे विश्व को मनवा देंगे । और देश के दुश्मनों एवं मानवता के दुश्मनों को उचित दंड देंगे ।
ज्योर्तिविद पं. संजय शर्मा 9424828545, 9893129882)
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