दिलेर समाचार, (नीरज शर्मा)। भारतवर्ष विश्व में सदा से ही अपनी सांस्कृतिक विरासत की समृद्धी के लिए जाना जाता है। भारत का मूल धर्म सनातन धर्म है।वैसे तो विश्व में यह मान्यता आम है कि हर धर्म व सम्प्रदाय का निकास सनातन धर्म से ही हुआ है। परन्तु यदि आज के भारत की सीमाओं की बात करें तो इसकी माट्टी में सनातन धर्म से जन्में अनेक संप्रदाय एवंम पंथ बिना किसी कठिनाई के फल फूल रहे हैं और आज विश्व के प्रमुख धर्मों में गिने जाते है।भारत ने बाहर से आए संप्रदाय व धर्मों को भी अपनी गोद में बिठा उन्हें भी अपनों सा ही दुलार व सम्मान दिया।भारत में बहुगिनती में धर्म होने के कारण इन धर्मो से जुड़े त्यौहार प्रमुख त्यौहारों के रूप में हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं पर यदि आज के दौर में देखे तो ज्यादातर धर्मों के बहुत से त्यौहारों के विशेष दिवस हुड़दंग दिवस बन गए हैं।शहर,गांव हर छोटे बड़े मार्ग पर डीजे या लाऊड स्पीकर लगे नगर कीर्तन या धार्मिक जलुस के नाम पर घूमते शोर मचाते कई कई वाहन,उनके आगे पिछे चलते हुए तलवारें,डण्डे,भाले घुमाते हुए सैंकड़ो नौजवान और उनकी वाह वाही करती हजारों की भीड़।एक एक मोटरसाइकिल पर चढ़े हुए तीन-तीन नवयुवक ट्रैफिक रूल्स की धजिया उडाते और हाथों में हथियार लहराती उनकी टोलियां।आते जाते लोंगो को डराना,रेहड़ी पटरी लगाने वाले से लूटपाट,कोई कुछ वोले तो इस उन्मादी भीड़ के लिए इकट्ठे हो बसों, सरकारी प्रोपर्टी आदि पर पत्थर बरसाने या आग लगा देना आम सी बातें हैं।हम सब सरकार पर तो अक्सर उँगली उठा देते हैं कि सरकार आम जनता के लिए कुछ नहीं करती पर हमें भी देखना होगा कि हम उन सुविधाओ को किस हाल में रखते हैं जो थोड़ी बहुत सरकार हमें मुहैया करवाती है।क्या आपके परिवार में कोई आपसी झगड़ा हो जाए तो क्या अपने ही घर पर पत्थरबाजी या आगजनी करने लगतें हैं?निश्चित तौर पर इसका जबाब नहीं ही है।इसी तरह अपनी देश की संपति तो तहस नहस करना अपने घर को तहस नहस करना ही है।जब प्रशासन कहता है कि यह धार्मिक नगर कीर्तन या धार्मिक जलूस इस इलाक़े से ले जाने पर हिंसा भड़कने का खतरा है तो हमारे धर्म के ठेकेदार उस इलाक़े से ही होकर जाना जरूरी समझते हैं।इन जलुसों के साथ चल रहे टुचभईये नेता अपनी राजनिती चमकाने के लिए अपनी जहर बुझी जुबान से मामले को और भड़का देते है।जिसका परिणाम हिसां आगजनी के रूप में सामने आता है।अब आप यह सोचिए की जिन इलाकों में या जिस आम परिवार के साथ इस उन्माद की वजह से कोई दुखद घटना घटी है क्या वे पूरे जीवन में उस दुख को भूल उस त्यौहार की खुशियों में शामिल हो सकेगा।क्या हम अराध्य,पीर,पैगम्बर,गुरू के जन्म की खुशियां या उनकी मृत्यु का शौक इसी तरह दूसरे की खुशियां को आग के हवाले कर मनाते रहेंगे?जो नेता किसी गली-मुहल्ले में बनाई छोटी सी नालियों तक का उद्घाटन अपने श्री कर कमलों से करने में विश्वास करते हो तो धार्मिक उन्माद की हिंसा यदि धर्म की सेवा है तो वे खुद इस हिंसा,तोडफोड,लूटपाट आगजनी का पुण्य लेने के लिए क्यों आगे नहीं आते।क्यों इन कामों के लिए नशेडी किराए के गुण्डों को तथाकथित धर्म सेवक बना यह सुनहरी मौका उन्हे दे देते हैं।क्या आज तक के हुए दंगों में वो पहला इंसान पकड़ा गया जिस ने पहला पत्थर मारा हो या पहला वार किया हो।उसका कभी भी पता नहीं चलता वो कौन था।इन कामों में आम इंसान ही पकड़े जाते हैं और इन में मरता भी आम इंसान ही है। वो चाहे किसी भी धर्म का हो। अभी चल रहे गणेश उत्सव और आगे आने वाले त्यौहारों में इस उन्माद से खुद भी बचें अपने प्रियजनों को भी बचाए।आने वाले त्यौहारों पर खुशियां बांटो,गरीबों को दान दो,दूसरे के दुख को दूर करने की कोशिश करो यही इन त्यौहारों का संदेश भी है और इनकों मनाने का प्रमुख कारण भी।इस लेख को यहीं विराम देते हुए कहूंगा की धर्म-जाति से बढ़कर है हमारा देश और देश का गौरव है तिरंगा जिसकी छाया में हम सुरक्षित जीवन जीते हैं जय हिंद ।
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