अशोक कुमार झा
आज मैं पंडित जवाहरलाल नेहरू की बात नही करूँगा क्योंकि उनके चीन वाले प्रकरण पर पहले ही बहुत किताबें लिखी जा चुकी हैं। आज मैं मोदी के काल के आधुनिक भारत और यूपीए तथा मनमोहन काल की बात के साथ में अपने हिंदुस्तान की बात करूँगा।
आज से कुछ दिन पहले भी सोनिया जी और मनमोहन वाले कांग्रेस के जमाने में भी एक बार ऐसे ही भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हो गयी थी। तब हमारे प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह जी ने दौलत बेग ओल्डी में भारत की सेना द्वारा बनाए गए बंकर को स्वयं तोड़ने का हुक्म देकर सेनाओं को पीछे हटने के लिए कहा और इस प्रकार उन्होंने चीन से शांति स्थापित कर ली।
हमें याद होगा कि एक दो बार भारतीय सेना ने जब चीन से लगी सीमा पर रोड बनाने का प्रयास किया तो चीन ने आब्जेक्शन किया और मनमोहन सिंह जी के निर्देश पर रोड बनाने का काम रोक दिया गया और इस प्रकार यूपीए की गठबंधन वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार ने भारत चीन सीमा पर भारत द्वारा बनाई जा रही रोड का काम रुकवाकर बार बार शांति स्थापित करवाने का कार्य किया।
हमारा इतिहास बता रहा है कि हम 2004 से 2014 तब इसी प्रकार पीछे हट हट कर शांति स्थापित करते रहे जिस कारण भारत का सिर्फ लद्दाख सेक्टर में 700 वर्ग किलोमीटर की हमारी जमीन चीन ने शांति स्थापित करते हुए शांतिपूर्वक कब्जा कर लिया जिसकी हमें भनक ही नही लगी और तत्कालीन प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह जी साइलेंट मोड में साइलेंट बन कर रह गए। यही एकतरफा शांति की कीमत हमने चीन को बार बार दी जिसे यूपीए की सरकार में दिया गया भले ही यह हमारी मजबूरी रही हो या कुछ और, यह अलग विषय है। हम इस सच्चाई से इंकार नहीं कर सकते कि हमने बार बार एकतरफा कीमत देकर समझौता किया है।
इसके बाद 2014 के बाद से आया मोदी का शासन काल जो अबतक चल रहा है। प्रधानमंत्राी मोदी ने शुरू में ही कहा था न आंख दिखाएंगे, न आंख झुकाएंगे, मतलब न दूसरे की सीमा में जाएंगे और न अपनी सीमा में अतिक्रमण बर्दाश्त करेंगे।मोदी ने चीन से लगे अरुणाचल, लद्दाख एवं अन्य सीमावर्ती इलाकों पर रोड बनाने का काम तेजी से किया, हवाई पट्टियों का निर्माण और रिनोवेशन शुरू हुआ। चीनी सेना ने कई बार आब्जेक्शन किया मगर मोदी जी ने पीछे हट के शांति स्थापित करने वाली कांग्रेसी परंपरा को न अपनाकर अपना कार्य जारी रखा जिस कारण आज वहां रोड भी बनी और हवाई पट्टी भी। बस यहीं से चीन की असली
पीड़ा शुरू हुई जो होना भी स्वाभाविक था।
यहां तक कि डोकलाम में जब भारत और चीन की सेना आमने सामने खड़ी थी तो वहाँ भी भारत शांति स्थापित करने के नाम पर पीछे नहीं हटा। शायद अब आगे भी यही होता रहेगा। ऐसे में इतना तो स्वाभाविक है कि जब आप पीछे नहीं हटेंगे और हमलावर आपके घर में आएगा तो उससे लड़ाई तो होगी ही और उसके बाद उस लड़ाई का परिणाम जो निकलेगा, उसमें दोनों पक्ष का कुछ न कुछ नुकसान भी होगा ही। जैसे आज हमारे जवान वीरगति को प्राप्त हुए हैं और चीनी सैनिक हमारे जवानों के हाथों से मारे गये हंै। शायद आने वाले समय में हमें ऐसी और भी घटनाएं देखने को मिल सकती हैं जिसके लिये हमें तैयार रहना होगा क्योंकि हमने अब पीछे हटकर अपनी जमीन चीन को दे देने वाली शांति के मार्ग का त्याग कर दिया है। आज यह सच है कि चीन सैनिक मारे गए हैं और हमारे जवान बलिदान हुए हंै परन्तु हमारे लिये संतोष का विषय यह है कि हमने चीनी सैनिकों को उसकी ही भाषा में जवाब देना सीख लिया है।
युद्ध चाहे छोटा हो या बड़ा, उसके कुछ न कुछ परिणाम होते हंै और वह परिणाम हर बार एक जैसे नहीं होते। समय और परिस्थिति के हिसाब से वह स्थिति कभी कभार उलट भी हो सकती है परन्तु उससे हमें घबराने की जरुरत नहीं है। ऐसे में हल्की टिप्पणियां करने की जगह पर देश और सेना के साथ हमें डटकर खड़े रहने की जरुरत है क्यांेकि अब हमारे साथ साथ पूरी दुनियां को यह समझ लेना होगा कि यह 2020 का भारत है जिसमें पहले की अपेक्षा काफी अंतर आ चुका है।
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