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चित्र नहीं, कट्टर चिंतन का प्रतीक हैं जिन्ना

Posted at: Jun 24 , 2018 by Dilersamachar 9567

राज सक्सेना

 दिलेर समाचार,किसी भी ऐसे समाज में जिसमें विभिन्न समुदाय और मत-मतान्तरों के लोग रहते हों, उसमें मत भिन्नता एक आवश्यक तत्व के रूप में विद्यमान होना उसकी जीवन्तता का प्रतीक होता है। भारतीय समाज में यह जीवन्तता भरपूर है। हम सब सहस्त्राधिक मत-मतान्तरों और लाखों मतभिन्नताओं के रहते भी एक राष्ट्र, एक समाज और एक सामुदायिक संस्कृति के रूप में जी रहे हैं तो उसका एक मात्रा कारण यह है कि भारत का बहुसंख्यक समुदाय ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की नीति पर विश्वास करता है और समाज के उन छोटे अंगों को भी वही सुविधाएं देने पर विश्वास करता है जो वह समाज के अन्य अंगों से स्वयं के लिए वांछना करता है।

            पिछले दिनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक घटनाक्रम घटित हुआ। अलीगढ़ से निर्वाचित भाजपा के सांसद ने एक पत्रा देकर विश्वविद्यालय प्रशासन से यह पूछा कि एएमयू में जिन्ना के चित्रा कहाँ कहां लगे हैं। इस पत्रा का पता छात्रा संघ को लगते ही वह मैदान में उतर आया और उसने ब्यान दिया कि जिन्ना का जो चित्रा छात्रा संघ भवन में लगा है, वह चित्रा 1938 में जिन्ना को एएमयू के छात्रा संघ की स्थाई सदस्यता देने के बाद लगाया गया था और इसे किसी भी दशा में हटाया नहीं जाएगा। उसने यह भी कहा कि जिन्ना भारतीय स्वतन्त्राता आन्दोलन के इतिहास पुरुष हैं और उन्हें मिटाया नहीं जा सकता।

चित्रा न हटाने के समर्थन में उसने कुछ तर्को और कुतर्कों का भी सहारा लिया। इन तर्कों के प्रकाश में आते ही कुछ हिन्दूवादी संगठनों ने एएमयू के छात्रा संघ के हाल से पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना का चित्रा हटाने की मांग लेकर एक विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन को रोकने के लिए एएमयू छात्रा संघ विरोध में लाठी डंडे लेकर एएमयू के मुख्य द्वार पर डट गया, फलस्वरूप संघर्ष होना स्वाभाविक था, वह हुआ। पुलिस की सतर्कता के कारण कोई गम्भीर हादसा नहीं हुआ और उसने हिन्दू प्रदर्शनकारियों को वहाँ से खदेड़ दिया। इसके बाद एएमयू के छात्रों ने प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरना शुरू कर दिया और वही सब कुछ करना शुरू कर दिया जो आमतौर पर कुछ सरकार विरोधी छात्रा संगठन किया करते हैं।

            बात आई गयी हो जाती और कुछ दिन बाद लोग इस बात को भूल भी जाते किन्तु ऐसे सुअवसरों की तलाश में भागी भागी फिरती जेएनयू के वामपंथी छात्रा संघों की टीमों और देश के टुकड़े-टुकड़े होंगे, गिरोह के छात्रों ने अपने आकाओं के इशारे पर जामिया मिलिया के कुछ छात्रा संगठनों के साथ मिल कर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर आग में घी डाल दिया और मामले को सांप्रदायिक कर दिया।

            इस पूरे घटनाक्रम से यह सिद्ध हो गया कि जिन्ना का चित्रा केवल चित्रा नहीं है बल्कि एक कट्टरपंथी सोच का प्रतीक है जिसे एएमयू का छात्रा संघ आपसी बातचीत के रास्ते से बीच का कोई रास्ता निकालने के बजाय जिन्दा रखना चाहता है ताकि देश के मुस्लिम समुदाय को इस आधार पर उत्तेजित और एकत्रित किया जा सके। वह यह सोचना ही नहीं चाहता कि किसी भी सभ्य समाज में संघर्ष नहीं सद्भावना और सहमति ही किसी समस्या का समाधान हो सकती हैं। संघर्ष समस्याओं का एक अंतहीन अनुक्रम प्रारम्भ करता है और अंत में या तो बात फिर बातचीत और सहमति पर ही आकर रूकती है या फिर भयंकर विनाश की स्थिति पर। दोनों ओर से अपने अपने पक्ष को सही मानकर उन पर अड़ जाना और उसे अहं का प्रतीक बना लेना किसी भी दशा में उचित नहीं कहा जा सकता।

प्रकरण को कवर करने वाले पत्राकारों और फोटोग्राफरों को पीटा गया। उनके कैमरे तोड़ने की कोशिश की गयी। यहाँ भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले को गंभीरता से न लेकर यह कह कर अपनी जान छुडा ली कि वह जांच करेंगे कि हमलावर छात्रा विश्वविद्यालय के थे या बाहरी। ऐसा लगता है कि प्रसंग में खुली छूट दी जा रही है और प्रकरण को हवा दी जा रही है।

इस क्रम में अगर हम जिन्ना की जीवनी पर नजर डालें तो पाते हैं कि जिन्ना का भारत के विनाशकारी विभाजन में सबसे बड़ा हाथ था। यह ठीक है कि पाकिस्तान के लिए जिन्ना कायदे आजम भी हैं और बाबा-ए-पाकिस्तान (राष्ट्र पिता ) भी हालांकि अब उनकी वह अहमियत नहीं है जो पहले हुआ करती थी। किसी हद तक उन्हें भारतीय स्वतन्त्राता संग्राम का युग पुरुष भी उसी प्रकार कहा जा सकता है जिस प्रकार भारत के जवाहरलाल नेहरु को। इन दोनों महत्वाकांक्षी व्यक्तियों पर अंग्रेजों के इशारे पर काम करने के आरोप लगते रहे थे और जेलों में भी ये लोग फाइव स्टार सुविधाएं लेते रहे थे। इन दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि एक कट्टर मुस्लिम था तो दूसरा अपनी हिन्दू घराने में पैदाइश को ‘एक्सीडेंटल बर्थ’ मानता और कहता भी था। एक ने पाकिस्तान से हिन्दुओं को भगाने में कोई कसर नहीं रखी तो दूसरे ने मुसलमानों को भारत में रोकने का हर सम्भव प्रयास किया।

जिन्ना कोई खानदानी मुसलमान नहीं थे। उनका जन्म तत्कालीन गुजरात के गोंडल राय के पनोली गाँव में हुआ था। उनके पिता ने मुस्लिम धर्म ग्रहण किया था और उनका नाम झींणा भाई पूंजा भाई ठक्कर था। रोमन लिपि की दरिद्रता के चलते - शब्द को जेड से लिखने के कारण मौ. अली अपना जिन्ना लिखने लगे और यही प्रचलित भी हुआ। 1940 में जिन्ना एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी दोस्ती एक प्रमुख पारसी उद्योगपति दिनशा मानक जी पेटिट से थी। दिनशा की 16 वर्षीय बेटी रत्ती बाई (रुटी) जिसे उनको बेटी समान समझना चाहिए था, की ओर जिन्ना ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया और उसका इस कदर ब्रेनवाश कर दिया कि वह पिता के विरोध के बावजूद जिन्ना से विवाह की जिद पर अड़ गयी। दो वर्ष बाद बालिग हो जाने पर उसने इस्लाम धर्म कबूल कर जिन्ना से शादी करली और 1919 में इनकी एक दीना नामकी बेटी भी हुई। बेटी होने के कुछ ही दिनों के बाद जिन्ना ने रूटी से दूरी बढ़ा ली और 1927 में वे उससे दूर ही हो गये। दीना ने एक पारसी युवक से विवाह कर लिया और वह भारत में ही रही।

यहाँ यह भी प्रश्न उठता है कि देश के टुकड़े करवाने वाले शख्स, जो लाखों लोगों की हत्या, लाखों महिलाओं के बलात्कार और अरबों रुपयों की सम्पत्ति के विनाश का कारण बना, उसके प्रति इतनी आसक्ति क्यों ? जब पाकिस्तान में गांधी जी को इतना सम्मान नहीं तो भारत में जिन्ना को इतना सम्मान क्यों। क्या आप को यह अजीब सा नहीं लगता। क्या यह मात्रा छात्रा संघ के ईगो की लड़ाई है, शायद नहीं। जिन्ना का चित्रा तो एक कट्टरवादी सोच का प्रतीक है जिसे कुछ लोग भारत में केवल इसलिए बनाए रखना चाहते हैं कि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे। इसके रहते भारत में एकता न हो सके। यह सही मायनों में एक सांझी संस्कृति का सम्वाहक न बन सके। देश के टुकड़े-टुकड़े करने वाले गिरोह के लोग इसे दिखा-दिखा कर देश के लोगों को डराते रहें और अल्पसंख्यकों को याद दिलाते रहें कि तुम्हें भी अपने लिए इस तरह के विकल्प खुले रखने चाहिए ,इसके लिए तैयार भी रहना चाहिए।

गेंद अब प्रदेश और केंद्र की सरकार के पाले में हैं कि वह इस कट्टरपंथी विचारधारा और देश के टुकड़े-टुकड़े करने वाली सोच रखने वाले लोगों से कैसे निबटती है। देश इन्तजार कर रहा है कि कोई सकारात्मक और कड़ा पग इस सन्दर्भ में उठाया जाए ताकि फिर कोई इसी तरह का नया विवाद उठा कर देश की शान्ति को भंग करने का प्रयास सम्भव न हो सके। इस सुलगती आग को एक बार तो बुझाना ही होगा वरना यह देश को लील जाएगी। इसके बाद बाकी क्या बचेगा, इसकी कल्पना ही भयावह है। (युवराज)

 

 

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