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राजनाथ के उत्तराधिकारी के तौर पर उस समय दो ही नाम सबसे तेजी से आगे आए, जिनमें बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी और गुजरात में मोदी सरकार में गृहमंत्री रहे अमित शाह का नाम था। सुशील मोदी के नाम पर संघ में सहमति नहीं बन पाई क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार से मुकाबले के लिए एक बड़े चेहरे की जरूरत थी, ऐसे में अमित शाह इस रेस में आगे आ गए, और प्रधानमंत्री मोदी से नजदीकियों के चलते वह सत्तारूढ़ भाजपा के अध्यक्ष पद पर काबिज भी हो गए।उन्हें अमित शाह को आज भाजपा अध्यक्ष के तौर पर तीन साल पूरे हो गए, इस दौरान उन्होंने अपना निर्विरोध चुने जाने के बाद अपना दूसरा कार्यकाल भी शुरू कर दिया। भाजपा के शाह बने अमित शाह के नाम पर इस तीन साल के सफर में ढेरों उपलब्धियां हैं। आइए डालते हैं उन पर एक निगाह अगस्त 2014 में भाजपा अध्यक्ष का पद संभालने के बाद अमित शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी चारों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत दिलाने की। लोकसभा चुनावों में यूपी में भाजपा को शानदार जीत दिलाने वाले अमित शाह का करिश्मा यहां भी जारी रहा और पहले चरण में हुए हरियाणा और झारखंड चुनावों में शाह के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से पहली बार सरकार बनाई। इसके कुछ दिन बाद ही हुए महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों में भी शाह ने भाजपा को शानदार जीत दिलाई। महाराष्ट्र में यह अमित शाह की रणनीति ही थी जो पहली बार शिवसेना से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने के बाद भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और सरकार बनाई। जबकि जम्मू कश्मीर में शाह की रणनीति की बदौलत ही भाजपा ने विरोधी विचारधारा की पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई।बहुमत से दूर होकर भी गोवा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनवाईअमित शाह की रणनीति हिंदू बहुल राज्यों में ही कामयाब नहीं रही बल्कि गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में भी उनका जादू चला। जहां पार्टी दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद भी सरकार बनाने में सफल रही। यहां तक की अरुणाचल प्रदेश में भाजपा का कोई खास वजूद न होने के बावजूद भी पूरी सरकार ही पाला बदलकर भाजपा के खेमे में आ गई।पहली बार पूर्वोत्तर राज्य असम में खुलकर खिला कमलअमित शाह की रणनीति का सबसे बड़ा कमाल देखने को मिला पूर्वोत्तर राज्य असम में, जहां भाजपा ने पहली बार अपने दम पर सरकार बनाई। असम में बड़ी मुस्लिम आबादी होने के बावजूद भी ये अमित शाह का ही कमाल था कि वहां सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में पूर्वोत्तर राज्य में पहली बार भगवा सरकार बनी। ये शाह की रणनीति ही थी जिन्होंने चुनावों से एक साल पहले ही असम के लोकप्रिय नेता सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दियाऐसा नहीं है कि अमित शाह को तीन साल के इस सफर में केवल सफलताएं ही मिलीं, इस दौरान उन्हें कई असफलताओं का भी सामना करना पड़ा। बिहार के विधानसभा चुनावों में अमित शाह को लालू-नीतीश के महागठबंधन से ऐसी ही असफलता हाथ लगी थी। लेकिन 20 महीनों के अंदर ही अमित शाह ने उस असफलता को सफलता में बदलते हुए वहां दोबारा भाजपा-जेडीयू के गठबंधन वाली सरकार बनवा दी।
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यूपी और उत्तराखंड में दिलाई विराट जीततीन साल के सफर में अमित शाह की सबसे बड़ी उपलब्धि रही यूपी और उत्तराखंड के चुनावों में भाजपा कीविराट जीत। इसी साल मार्च में हुए विधानसभा चुनावों में अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने पहली बार यूपी में 300 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई। उत्तराखंड में भी भाजपा को पहली बार 40 पार सीटें मिलीं।भाजपा को बनाया दुनिया की सबसे बड़ी पार्टीभाजपा का ताज संभालने के बाद अमित शाह ने केवल देशभर में भाजपा सरकार बनाने के लिए ही काम नहीं किया बल्कि संगठन के स्तर पर भी भाजपा को मजबूत किया। शाह ने पद संभालते ही भाजपा की सदस्यता बढ़ाने का अभियान शुरू किया। मिस कॉल से भाजपा की सदस्यता अभियान शुरू किया गया जिसका लक्ष्य रखा गया 5 करोड़ सदस्य। भाजपा ने जल्द ही इस लक्ष्य को हासिल कर दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का रुतबा भी हासिल कर लिया।अध्यक्ष बनने के बाद की 575 रैली 800 बैठकअध्यक्ष पद संभालने के बाद अमित शाह ने जितनी सक्रियता दिखाई उतनी शायद ही देश में किसी अन्य राजनीतिक शख्सियत ने दिखाई हो। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार तीन साल के कार्यकाल में अमित शाह ने 16 राज्यों में 575 से ज्यादा रैलियां कीं। इसके अलावा 800 से ज्यादा सांगठनिक बैठक कीं। खास बात ये है कि इस दौरान शाह ने भाजपा को बूथ स्तर पर मजबूत करने पर तो विशेष ध्यान दिया ही उन्होंने उन राज्यों में भी भाजपा की पैंठ बढ़ाई जहां भाजपा का खास वजूद नहीं रहा है।
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