दिलेर समाचार,एक फ़ेसबुक पोस्ट इन दिनों वायरल हो रहा है। इस पोस्ट में एक शहीद की पत्नी ने बताया कि शहादत के बाद पति के बिना जिंदगी जीना किसी जंग से कम नहीं होता है। संगीता अक्षय गिरीश ने बताया है कि कैसे उनका छोटा सा ख़ुशहाल परिवार आने वाली अनहोनी से अंजान था। उनकी तीन साल की बेटी के सिर से पिता का साया उठ चुका है।
एक साल पहले उन्होंने अपने पति को खो दिया था, आज उनके पास अक्षय की यादें हैं। उन्हीं यादों के पिटारे से कुछ यादें उन्होंने यहां बिखेर दी हैं। आइए उनके इस पोस्ट के कुछ अंश यहां पढि़ए.. 2009 की बात है जब उसने मुझे प्रपोज किया। मैं उससे मिलने चंडीगढ़ एक फ्रैंड के साथ मिलने गई थी,हम वहां से शिमला पहुंचे। वहां कर्फ्यू था, जो रेस्त्रां उसने बुक करवाया था, वो बंद हो चुका था और जल्दबाजी में वो रिंग लाना भूल गया था। अपनी जेब से पेन ड्राइव निकालकर घुटने में बैठकर उसने मुझे प्रपोज किया। 2011 में हमारी शादी हुई, मैं पुणे आ गई। दो साल बाद नैना का जन्म हुआ। उसे अपने काम के सिलसिले में काफी दिनों तक बाहर रहना पड़ता था। हमारी बच्ची छोटी थी, इसलिए हमारे परिवारों ने कहा कि मैं बेंगलुरु आ जाऊं। मैंने फिर भी वहीं रहना चुना जहां अक्षय था। मैं हमारी उस छोटी सी दुनिया से दूर नहीं जाना चाहती थी, जो हमने मिल कर बनायी थी। उसके साथ ज़िंदगी हंसती-खेलती थी. उससे मिलने नैना को लेकर 2011 फ़ीट पर जाना, स्काईडाइविंग करना, हमने सबकुछ किया।2016 में उसे नगरोटा भेजा गया। हमें अभी वहां घर नहीं मिला था, इसलिए हम ऑफ़िसर्स मेस में रह रहे थे. 29 नवम्बर की सुबह 5:30 बजे अचानक गोलियों की आवाज़ से हमारी आंख खुली। हमें लगा कि ट्रेनिंग चल रही है, तभी ग्रेनेड की आवाज़ भी आने लगी।
5:45 पर अक्षय के एक जूनियर ने आकर बताया कि आतंकियों ने तोपखाने की रेजिमेंट को बंधक बना लिया है। उसके मुझसे आखरी शब्द थे "तुम्हें इसके बारे में लिखना चाहिए"।
सभी बच्चों और महिलाओं को एक कमरे में रखा गया था। संतरियों को कमरे के बाहर तैनात किया गया था, हमें लगातार फ़ायरिंग की आवाज़ आ रही थी। मैंने अपनी सास और ननद से इस बीच बात की। सुबह 8:09 पर उसने ग्रुप चैट में मेसेज किया कि वो लड़ाई में है।
8:30 बजे सबको सुरक्षित जगह ले जाया गया। अभी भी हम सब पजामों और चप्पलों में ही थे। दिन बस गुजरता जा रहा था, लेकिन कोई ख़बर नहीं मिल रही थी। मेरा दिल बैठा जा रहा था, मुझसे रहा नहीं गया मैंने 11:30 बजे उसे फ़ोन किया। किसी और ने फ़ोन उठा कर कहा कि मेजर अक्षय को दूसरी लोकेशन पर भेजा गया है।
लगभग शाम 6:15 बजे कुछ अफ़सर मुझसे मिलने आये और कहा, "मैम हमने अक्षय को खो दिया है, सुबह 8:30 बजे वो शहीद हो गए।" मेरी दुनिया वहीं थम गयी, न जाने कितने ख्याल मेरे मन में आने लगे.. कभी लगता कि काश मैंने उसे कोई मेसेज कर दिया होता, काश जाने से पहले एक बार उसे गले लगा लिया होता, काश एक आखिरी बार उससे कहा होता कि मैं उससे प्यार करती हूं।
चीज़ें वैसी नहीं होतीं, जैसा हमने सोचा होता है. मैं बच्चों की तरह बिलखती रही, जैसे मेरी आत्मा के किसी ने टुकड़े कर दिए हो। दो और सिपाही भी उस दिन शहीद हो गए थे. मुझे उसकी वर्दी और कपड़े मिले। एक ट्रक में वो सब था जो इन सालों में हमने जोड़ा था। लाख नाकाम कोशिशें कीं अपने आंसुओं को रोकने की। आज तक उसकी वर्दी मैंने धोयी नहीं है। जब उसकी बहुत याद आती है, तो उसकी जैकेट पहन लेती हूं। उसमें उसे महसूस कर पाती हूं।
शुरू में नैना को समझाना मुश्किल था कि उसके पापा को क्या हो गया, लेकिन फिर उससे कह दिया कि अब उसके पापा आसमान में एक तारा बन गए हैं। आज हमारी इक्ट्ठी की हुई चीज़ों से ही मैंने एक दुनिया बना ली है, जहां वो जीता है, मेरी यादों में, हमारी तस्वीरों में आंखों में आंसू हों, फिर भी मुस्कुराती हूं। जानती हूं कि वो होता तो मुझे मुस्कुराते हुए ही देखना चाहता।
ये सिर्फ एक संगीता अक्षय गिरीश की काहानी नहीं हैं.. ऐसी कई वीरागंनाए है जो अपने पति और बच्चों के पति को खो देने के बाद एक सिपाही की जिंदगी जी रही हैं। जिन्हें रोजाना इस जिंदगी की जंग में लड़ना होता है।
जहां हमारे देश के बहादुर सिपाही देश हमारी सुरक्षा के लिए जान दे देते है। लेकिन उनके जाने के बाद उनके परिवार को किस गम से गुजरना पड़ता है। ये सोचकर भी रुह कांप जाती है। सलाम है ऐसे शहीद परिवारों को जो इस जिंदगी की जंग में भी डटकर लड़ रहे है
शहीदों के परिवारों को वो सब सहना पड़ता है, जिसके बारे में सोच कर भी शायद आप कांप उठेंगे. उनके अपने क़ुर्बान हो जाते हैं हमारी रक्षा करते-करते। हम सलाम करते हैं इन लोगों को जो ये सब सहते हैं, ताकि हम सुरक्षित रह सकें।
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