दिलेर समाचार, कोरोनावायरस के संकट बीच लॉकडाउन में कुछ रिहायतें तो दी गयी हैं परन्तु थिएटर से जुड़े लोगों के लिए वित्तीय संकट अभी ख़त्म नहीं हुआ है। एक थिएटर समूह का मुख्य वित्तीय स्रोत इसके टिकट हैं। अब अगर उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग के नियम से जाना पड़ता है और दर्शकों को बीच में कम से कम एक या दो सीटों के अंतर से बैठना पड़ता है तो उन्हें अपनी दर्शकों की ताकत का एक तिहाई कम करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
लॉकडाउन के दौरान स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका श्रीजा बासु रॉय ने थिएटर समूह से जुड़े दर्जनों कलाकार व थिएटर मालिकों से बात की। इस दौरान थिएटर पर्सनैलिटी अरुणित हलदर, जो 8-9 साल से डायरेक्शन में हैं, के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर वह टूट से जाते हैं।
उनका मानना है की रंगमंच एक कला का रूप है जो अपने जीवंत दर्शकों के बिना कोई अस्तित्व नहीं देखता है और अगर कुछ भी किया है, तो लॉकडाउन ने हमें शारीरिक रूप से दूर कर दिया है। वह इस बारे में भी बात करते हैं कि उनके लिए मंच पर दर्शकों के साथ तात्कालिक संबंध स्थापित करने के अलावा और कुछ नहीं है। जो लोग मेगा सीरियल्स और फिल्मों में काम करते हैं, उन्हें कैमरे से दुरी बनानी होती है और उन्हें रिटेक के माध्यम से अपने शॉट्स को सही करने के मौके मिलते हैं। लेकिन थिएटर केवल आपको अपना सर्वश्रेष्ठ उत्पादन करने का एक मौका ही देता है।
अरुणित आगे कहते हैं की इस दौरान सबसे बड़ी त्रासदी शायद उन लोगों के भाग्य के साथ है जो बरसो से थिएटर से जुड़े हैं और अब उनके सामने और कोई विकल्प भी नहीं बचा है। उनमें से कुछ का सीरियल उद्योग के भीतर कुछ कनेक्शन हो सकता है, लेकिन ज्यादातर बेकार ही बैठे हैं और वह इसको लेकर दुखी भी हैं।
अर्नस्ट एंड यंग-फिक्की ने 2016 में 'क्रिएटिव आर्ट्स इन इंडिया' नाम से एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें अनुमानित 2.5% की दर से उद्योग की वार्षिक वृद्धि की भविष्यवाणी की गई। ऐसा कहने और वर्तमान स्थिति को देखते हुए, इसके जीवित रहने का सवाल उठता है।
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका
- श्रीजा बासु रॉय
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