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अंकित और अखलाक में सेक्युलर भेद

Posted at: Feb 23 , 2018 by Dilersamachar 9588

राकेश सैन

दिलेर समाचार, जब कोई निर्दोष मरता है तो वह केवल निर्दोष होता है और मारने वाला अपराधी। न मरने वाला का धर्म होता है न मारने वाले का। दोनों के बीच एक ही रिश्ता और एक ही पहचान होती है अपराधी व पीडि़त की परंतु देश का सेक्युलर तानाबाना अपने व्यवहार से बता देता है कि मरने वाले का मजहब क्या है और मारने वाला कौनसी आस्था में विश्वास रखता है। देश का कोई अखलाक या पहलु खान अपराधियों का शिकार होता है तो सेक्युलर कबीला पहुंच जाता है राजनीतिक पर्यटन करने, जेब में नोटों की गड्डियां और मुंह में गालियां भर कर परंतु जब दिल्ली में ही अंकित सक्सेना मारा जाता है तो देश की राजधानी होते हुए भी कोई उनके घर शोक व्यक्त करने तक नहीं पहुंचता। यही है देश का विकृत सेक्युलरवाद जो अंकित और अखलाक में भेद करता है।

यही सेक्युलर कुनबा है जो अंकित की हत्या को लेकर समाज को गुमराह कर रहा है तो दूसरी ओर लव जिहाद जैसी गंभीर समस्या पर इसके विपरीत रुख अपनाता रहा है। शादी-विवाह युवक-युवती का निजी मामला है और दोनों का निजी फैसला परंतु जब कोई प्रेम की बजाय किसी और उद्देश्य से दूसरे धर्म की लड़की को फंसा कर अपना संकीर्ण उद्देश्य पूरा करता है तो उसका विरोध होना ही चाहिए लेकिन हमारे सेक्युलरों को उस षड्ंयत्रा में प्यार झलकता है और अंकित की धर्मांध मौत पर बोलना भी उन्हें गंवारा नहीं।

याद करें अखलाक की मौत पर कितना रोए थे सेक्युलर। अवार्ड वापसी समुदाय ने अपने पुरस्कार गलियों में फेंकने ही शुरू कर दिए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल व कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता वहां राजनीतिक पर्यटन करके आए परंतु दिल्ली में रहते हुए भी इन नेताओं ने अभी तक इतना समय भी नहीं निकाला कि वह अंकित के परिवार को ढांढस ही बंधा आएं। यदी मरने वाला व मारने वाले अलग-अलग होते तो शायद इनका व्यवहार दूसरा होता।

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