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शिव रात्रि पर विशेष शिव ही हमारे परमपिता!

Posted at: Jul 14 , 2020 by Dilersamachar 9835

दिलेर समाचार, डा. श्रीगोपालनारसन एडवोकेट।  हम सत्यम,शिवम,सुंदरम को आत्मसात कर स्वयं को आत्म बोध में स्थापित कर परमात्मा से अपनी लौ लगाये।यही आध्यात्मिक लौ हमारे अंदर के विकारों से मुक्ति दिलाकर हमारे कल्याण का आधार बनती है। परमात्मा शिव हमे संगम युग मे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्ति कराकर युगपरिवर्तन द्वारा कलियुग से सतयुग में लाने के लिए यज्ञ रचते है। विश्व रचियता परमात्मा एक है,वही हमारे परमपिता है। जिसे कुछ लोग भगवान,कुछ लोग अल्लाह,कुछ लोग गोड ,कुछ लोग ओम, कुछ लोग ओमेन ,कुछ लोग सतनाम कहकर पुकारते है। यानि जो परम ऐश्वर्यवान हो,जिसे लोग भजते हो अर्थात जिसका स्मरण करते हो एक रचता के रूप में ,एक परमशक्ति के रूप में एक परमपिता के रूप में वही ईश्वर है और वही शिव है। एक मात्र वह शिव जो ब्रहमा,विष्णु और शकंर के

भी रचियता है। जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है शिव ही सुन्दर है यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।

गीता में कहा गया है कि जब जब भी धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जाते है,समाज में अनाचार,पापाचार , अत्याचार,शोषण,क्रोध,वैमनस्य,आलस्य,लोभ,अहंकार,का प्रकोप बढ़ जाता है। माया मोह बढ जाता है  तब परमात्मा को स्वयं

आकर राह भटके लोगो को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा का कार्य करना पडता है। ऐसा हर पाचं हजार साल में पुनरावृत होता है। पहले सतयुग,फिर द्वापर,फिर त्रेता और फिर कलियुग तक की यात्रा इन पांच हजार वर्षो में होती है। हांलाकि सतयुग में हर कोई पवित्र,सस्ंकारवान,चिन्तामुक्त और सुखमय होता है।परन्तु जैसे जैसे सतयुग से द्वापर और द्वापर से त्रेता तथा त्रेता से कलियुग तक का कालचक्र धूमता है। वैसे वैसे व्यक्ति रूप में मौजूद आत्मायें भी शान्त,पवित्र और सुखमय से अशान्त,दुषित और दुखमय हो जाती है। कलियुग को तो कहा ही गया है दुखों का काल। लेकिन जब कलियुग के अन्त और सतयुग के आगमन की धडी आती है तो उसके मध्य के काल को सगंम युग कहा जाता है यही वह समय जब परमात्मा स्वंय सतयुग की दुनिया बनाने के लिए आत्माओं को पवित्र और पावन करने के लिए उन्हे स्वंय ज्ञान देते है औरउन्हे सतयुग के काबिल बनाते है।

समस्त देवी देवताओ में मात्र शिव ही ऐसे देव है जो देव के देव यानि महादेव है जिन्हे त्रिकालदर्शी भी कहा जाता है। परमात्मा शिव ही निराकारी और ज्योति स्वरूप है जिसे ज्योति बिन्दू रूप में स्वीकारा गया है। परमात्मा सर्व आत्माओं से न्यारा और प्यारा है जो देह से परे है जिसका जन्म मरण नही होता और जो परमधाम का वासी है और जो समस्त संसार का पोषक है। दुनियाभर में ज्योतिर्लिगं के रूप में परमात्मा शिव की पूजा अर्चना और साधना की जाती है। शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग के रूप

में परमात्मा का स्मृति स्वरूप माना गया है।धार्मिक दृष्टि में विचार मथंन करे तो भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है।

शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नमः शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है। श्रावण मास में शिव स्तुति मनोकामना पूर्ण करने वाली होती है। ऋृग्वेद,यजुर्वेद व अर्थवेद में भगवान शिव को ईश,ईशान,रूद्र,ईश्वर,कपर्दी,नीलकण्ठ,सर्वज्ञ,सर्वशक्तिमान,भोलेशंकर नामों से जाना जाता है। वही भगवान शिव को

सहत्रपक्षु,तिग्यायुध,वज्रायुध,विधुच्छक्ति,नारायण,श्वेताश्वर,अथर्व,कैवन्य,तंन्तिरीय,त्रयम्बक,त्रिलोचन,ताण्डवनर्तक,अष्टमूर्ति,पशुपति,अरोग्यकारक,वप्रांवर्धक,औसधवधित

रूप में भी शिव को जाना जाता है। वही शिव को स्कन्द व वामन भी कहा गया। शिवालयों में पाषाण निर्मित शिव लिगं पर ही जलाभिषेक कर शिवस्तुति करने का प्रचलन है। लेकिन यदि मृणम्य शिवलिंगया बाजलिंग की उपासना कर शिवरात्रि पर जलाभिषेक किया जाए तो अधिक फलदायक होता है। गरूड पुराण में शिवलिगं निर्माण के विधान का उल्लेख किया गया है। जिसके तहत अलग अलग धातु या फिर वस्तु से निर्मित शिवलिंग की पूजा अर्चना से अलग अलग फल प्राप्ति होती है। कस्तूरी,चन्दन व कुमकुम से मिलकर बनाया गया गंधलिगं विशेष पूण्यकारी है। वही पुष्पों से पुष्पलिगं बनाकर शिव अराधना करने से पृथ्वी के अधिपत्य का सुख मिलता है।इसी प्रकार कपिल वर्ण गाय के गोबर से निर्मित गोशक्रलिगं की पूजा से एश्वर्य की प्राप्ति होना मानी जाती है। रजोमय लिंग पूजा करने से सरस्वती की कृपा साधक पर होने की मान्यता है। वही जौ,गेहूं,चावल के आटे से बने चवर्गोधूमशालिज लिंग पूजा से स्त्री,पुत्र व श्री सुख की अनुभूति का उल्लेख है। मिश्री से बने सितारखण्डमय लिंग पूजा से अरोग्यता ,हरताल व त्रिकुट लवण से बनाए गए लवणज लिंग से सौभाग्य प्राप्ति ,पार्थिव लिगं से कार्यसिद्धि ,भस्मय लिगं से सर्वफल प्राप्ति,गडोरथ लिगं से प्रीति वृद्धि,वशांकुर लिगं से वंश विस्तार,केशास्थि लिगं से शत्रुशमन,पारद शिव लिगं से सुख समृद्धि,कास्य व पीतल से बने शिव लिगं से मोक्ष प्राप्ति होने की मान्यता है।संसार में सबसे पहले सोमनाथ के मन्दिर में हीरे कोहिनूर से बने शिवलिंग की स्थापना की गई थी।विभिन्न धर्मो में परमात्मा को इसी आकार रूप में मान्यता दी गई।तभी तो विश्व में न सिर्फ 12 ज्योर्तिलिगं परमात्मा के स्मृति स्वरूप में प्रसिद्ध है बल्कि हर शिवालयों में शिवलिगं प्रतिष्ठित होकर परमात्मा का भावपूर्ण स्मरण करा रहे है। वही ज्योतिरूप में धार्मिक स्थलों पर ज्योति अर्थात दीपक प्रज्जवलित कर परमात्मा के ज्योति स्वरूप की साधना की जाती है।

शिव परमात्मा ऐसी परम शक्ति है,जिनसे देवताओं ने भी शक्ति प्राप्त की है। भारत के साथ साथ मिश्र,यूनान,थाईलैण्ड,जापान,अमेरिका,जर्मनी,जैसे दुनियाभर के अनेक देशों ने परमात्मा शिव के अस्तित्व को स्वीकारा है। धार्मिक चित्रों में स्वंय श्रीराम,श्रीकृष्ण और शंकर भी भगवान शिव की आराधना  में ध्यान मग्न दिखाये गए है। जैसा कि पुराणों और धार्मिक ग्रन्थों में भी उल्लेख मिलता है। श्री राम ने जहां रामेश्वरम में शिव की पूजा की तो श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से पूर्व शिव स्तुति की थी। इसी तरह शंकर को भी भगवान शिव में ध्यान लगाते देखे जाने के चित्र प्रदशित किये गए है। दरअसल शिव और शंकर दोनो अलग अलग है शिव परमपिता परमात्मा है तो ब्रहमा,विष्णु और महेश यानि शंकर उनके देव तभी तो भगवान शिव को देव का देव महादेव अर्थात परमपिता परमात्मा स्वीकारा गया है। ज्योति बिन्दू रूपी शिव ही अल्लाह अर्थात नूर ए इलाही है।वही लाईट आफ गोड है और वही सतनाम है।यानि नाम अलग अलग परन्तु पूरी कायनात का मालिक एक ही परम शक्ति है जो शिव है।

सिर्फ भारत के धार्मिक ग्रन्थों और पुराणों में ही शिव के रूप में परमात्मा का उल्लेख नही है बल्कि दुनियाभर के लोग और यहूदी,ईसाई,मुस्लमान भी अपने अपने अंदाज में परमात्मा को ओम,अल्लाह,ओमेन के रूप में स्वीकारते है। सृष्टि की रचना की प्रक्रिया का चिंतन करे तो कहा जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर की आत्मा पानी पर डोलती थी और आदिकाल में परमात्मा ने ही आदम व हवा को बनाया जिनके द्वारा स्वर्ग की रचना की गई। चाहे शिव पुराण हो या मनुस्मृति या फिर अन्य धार्मिक ग्रन्थ हर एक में परमात्मा के वजूद को तेजस्वी रूप माना गया है। जिज्ञासा होती है कि अगर परमात्मा है तो वह कहां है ,क्या किसी ने परमात्मा से साक्षात किया है या फिर किसी को परमात्मा की कोई अनूठी अनुभूति हुई है। साथ ही यह भी सवाल उठता है कि आत्माये शरीर धारण करने से पहले कहा रहती है और शरीर छोडने पर कहा चली जाती है।इन सवालो का जवाब भी सहज ही उपलब्ध है। सृष्टि चक्र में तीन लोक होते है पहला स्थूल वतन,दूसरा सूक्ष्म वतन और तीसरा मूल वतन अर्थात परमधाम। स्थूल वतन  जिसमें हम निवास करते है पंाच तत्वों से मिलकर बना है।

जिसमें आकाश पृथ्वी,वायु,अग्नि औरजल शामिल है। इसी स्थूल वतन को कर्म क्षेत्र भी कहा गया है।जहां जीवन मरण है और अपने अपने कर्म के अनुसार जीव फल भोगता है। इसके बाद सूक्ष्म वतन सूर्य, चांद और तारों के पार है जिसे ब्रहमपुरी,विष्णुपुरी और शंकरपुरी भी कहा जाता है। सूक्ष्म वतन के बाद मूल वतन है जिसे परमधाम कहा जाता है। यही वह स्थान है जहां परमात्मा निवास करते है। यह ीवह धाम है जहां सर्व आत्माओ का मूल धाम है। यानि आत्माओं का आवागमन इसी धाम से स्थूल लोक के लिए होता है। आत्मा और परमात्मा में एक विशेष अंतर यह भी है कि आत्माओं का जन्म होता है और परमात्मा का अवतरण होता है।  सबसे बडा अन्तर यह भी हैे कि आत्मा देह धारण करती है जबकि परमात्मा देह से परे है।परमात्मा निराकार है और परमात्मा ज्योर्ति बिन्दू यानि एक उर्जा के रूप में सम्पूर्ण आत्माओं को प्रकाशमान करता है ।तभी इस स्वर्णिम दुनिया की उत्तपत्ति होती है और सभी शिव स्वरूप परमात्मा के निर्देशन में अपना अपना पार्ट बजाते है।तभी तो इस सृष्टि को दुनिया का सबसे बड़ा रंगमंच भी कहा जाता है।तो आओ प्यार से बोले,बम बम भोले।

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