दिलेर समाचार, कुछ ही दिनों बाद 25 अगस्त से गणेश उत्सव शुरू हो रहा है। इन दिनों में गणेशजी की विशेष पूजा की जाती है। गणेशजी को पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती हैं जैसे दूर्वा का काफी महत्व है। इसके बिना गणेश पूजा पूरी नहीं होती है। विष्णु पुराण के अनुसार तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, इतनी प्रिय की भगवान विष्णु के ही एक रूप शालिग्राम का विवाह तुलसी से होता है, लेकिन भगवान गणेश को तुलसी अप्रिय है। इसीलिए गणेश पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है।
गणेशजी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं
प्रचलित कथा के अनुसार पुराने समय में अनलासुर नाम का एक असुर था। इसकी वजह से स्वर्ग और धरती पर सभी त्रस्त थे। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। असुर से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे अनलासुर का नाश करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल गणेश ही कर सकते हैं।
जब गणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय किए गए, लेकिन गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
गणेशजी को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाना चाहिए
शास्त्रों में दी गई कथाओं के अनुसार पुराने समय में तुलसी ने गणेशजी से विवाह करने की प्रार्थना की थी, लेकिन गणेशजी ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया था। इस बात से तुलसी क्रोधित हो गई थीं। तब उसने गणेशजी को दो विवाह होने का शाप दे दिया था। इस पर गणेशजी ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा।
एक राक्षस से विवाह होने का शाप सुनकर तुलसी ने गणेशजी से माफी मांगी। तब गणेश ने कहा तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण से होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में मोक्ष देने वाली होगी, परंतु मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा।
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