Logo
April 27 2024 06:38 AM

बदलती दुनिया में मां-बाप भी बन रहे हैं बच्चों के शोषण का शिकार

Posted at: Aug 13 , 2017 by Dilersamachar 9862

दिलेर समाचार, नेहा के पति दो साल की ट्रेनिंग  के लिए जर्मनी गए हुए थे। तब नेहा की गोद में साल भर का बबलू था जिसे संयुक्त परिवार होने के बावजूद उसे अकेलेे ही पालना पड़ा था। सारा परिवार नेहा के खिलाफ था। उनके सपोर्ट के बगैर नेहा काफी डिमारलाइज रहती, तिस पर बबलू के टेंट्रम्स। बबलू शुरू से प्राब्लम चाइल्ड था। नेहा उसकी जिद्दें आक्र चमकता सहते-सहते कई बार रो पड़ती थी।

बड़े होते-होते तो उसने नेहा का जीना ही मुश्किल कर दिया। क्यों होते हैं कुछ बच्चे ऐसे? कारण कोई एक नहीं होता। काउंसलर्स कहेंगे बच्चे की भावनाओं को समझो, उन्हें लाड़-दुलार भरपूर प्यार दो। ये करो, वो करो, यानी कि सारी हिदायतें पेरेंट्स के लिए ही हैं। बच्चे चूंकि बच्चे हैं, वे साफ छूट जाते हैं। वे चाहे जो करें, मां-बाप की भावनाओं को ठेस पहुंचाए।

आक्र ामक रवैय्या अपनाएं या उन चीजों के लिए जिद करें जो मां-बाप के लिये अपने बजट में खरीद पाना संभव न हो।
कई बार एहसानफरामोशी दिखाते हुए वे सेवा, त्याग तो मां-बाप से करवाते हैं मगर गुण दूसरों के गाते हैं। फलां टीचर उनका आदर्श बन जाता है या कोई अंकल आंटी उन्हें इंप्रैस किए रहते हैं। मां-बाप को वो टेकन फोर ग्रान्टेड मानकर चलते हैं यानी कि जन्म देने की चुनौती स्वीकार की है तो भुगतें परिणाम।
पीयर प्रेशर की बात करें तो उसका उन पर पूरा असर रहता है। पीयर्स ही उनके मार्गदर्शक बन जाते हैं।

वे उनका अंधानुकरण करते हुए अच्छा बुरा कुछ भी देखने सुनने को तैयार नहीं रहते हैं मां-बाप जो कहें गलत है। टॉनी, सुनील, सिद्धेश, रायमा, सृष्टि, सारिका, संगीता जो कहें, बस वही सही है।
मां-बाप की नसीहतों से तो जैसे उन्हें एलर्जी रहती है। उनकी रोक टोक भले की बातें बच्चों को इरीटेट करती हैं।
मां बाप और बच्चों के बीच बढिय़ा तालमेल न बैठने का एक मेजर कारण जनरेशन गैप माना जाता है। इस गैप को मिटाया नहीं जा सकता। यह तो रहेगा ही लेकिन इसे नेगेटिव न लेकर पॉजिटिव क्यूं न लिया जाए? माता पिता की जिन्दगी बच्चे कंपलीट करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे बच्चों की जिन्दगी माता पिता करते हैं। आपस में मिलकर वे एक सुखी परिवार की रचना करते हैं जहां से सिर्फ पॉजिटिव वाइब्स निकलती होती हैं।
फोन नंबर नौ सौ ग्यारह: बच्चों की बात में भला फोन नंबर कैसा? यह फोन नंबर हमारे यहां का नहीं बल्कि अमेरिका, कनाडा जैसे विकसित देशों का है जो बच्चों के अधिकारों को मद्देनजर रख कर कार्य करते हैं। लेकिन इसके क्या फायदे और क्या नुकसान हैं? ये भी जान लेना उचित होगा। सपोज कीजिए बच्चे की उद्दंडता से खीझकर मां या पिता ने उसे थोड़ा सा पीट दिया, एक दो थप्पड़ रसीद कर दिए तो बच्चे ने जैसा उसके दोस्तों ने बताया था, झट से 911 डायल कर पुलिस कंप्लेंट लिखा दी।
वहां की पुलिस पूरी मुस्तैद रहती है इधर फोन गया, उधर पुलिस हाजिर। माता पिता में से जिसने भी हाथ उठाया था, अरेस्ट हो जाता है। कम से कम छह माह की सजा उसे भुगतनी पड़ती है जिसका खमियाजा स्वयं बच्चे और परिवार के अन्य सदस्यों को भुगतना पड़ता है। एक तो विदेश में बसे एनआरआई वैसे ही इनसीक्योर फील करते हैं तिस पर उनके अपने ही बच्चे का ये कारनामा।
बच्चों में बढ़ती अवेयरनेस का ही यह दुष्परिणाम है इसीलिए बच्चों को अपनत्व से विश्वास में लेकर ये समझाना जरूरी है कि उनका यह कदम कितनी मुश्किलें पैदा कर सकता है। और यह कि उन्हें अपना मनोबल मजबूत रखना चाहिए। दोस्तों, टीचरों या किसी और की बातों में आकर अपने और घरवालों के लिए आफत नहीं बुलानी चाहिए।
जो मां बाप इतना प्यार सुरक्षा देते हैं, उनकी जरा सी बात को लेकर इतना हायपर होने की जरूरत नहीं। वे पीट कर फिर गले से भी तो लगा लेते हैं। उन्हें बतायें वो कैसी स्थिति होगी जब घर चलाने वाला जेल में होगा। बच्चे इतने नादान भी नहीं होते कि समझ न पायें।
आज जिस तरह बच्चे बड़े होकर मां बाप को अपना रंग दिखा रहे हैं उससे कोई भी अनजान नहीं है। पूत के लक्षण पालने में एक कहावत है। वास्तव में एक ही घर में जन्मी संतान के स्वभाव में कई बार बहुत अंतर होता है। पैसा कमाने की धुन, स्त्रियों का भी नौकरी को लेकर अतिव्यस्त हो जाना, टीवी इंटरनेट कलचर और नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन जैसा माहौल आज बच्चों को स्वच्छंद, अनियंत्रित, संस्कारहीन बना रहा है।
वक्त से पहले बच्चे परिपक्व हो रहे हैं। यह कुदरत के साथ छेड़छाड़ ही तो है। परिणाम तो नकारात्मक होना ही है। सैक्स को लेकर अधकचरी अनैतिक जानकारी, हर बुरी बात को लेकर अनुचित अनुकंठा, पोर्न साहित्य में दिलचस्पी, फिजूलखर्ची आदि ऐसी बातें हैं जो मां-बाप के लिये उन्हें पालने में मुश्किलें पैदा कर रही हैं। बच्चों को बिगड़ते वे देख नहीं सकते। रोक टोक करते हैं तो बच्चे बगावत पर उतर आते हैं। इमोशनली ब्लैकमेल करने लगते हैं। उन पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें अपराधी बना कटघरे में खड़ा कर देते हैं।
एक तो जिंदगी की जद्दोजहद ही कम नहीं इस बुरे वक्त में। उस पर बच्चों का ये रूख। मां बाप करें तो क्या करें। वे बेहद असमंजस की स्थिति से गुजरने लगते हैं। काउंसलर, सायकेट्रिस्ट मोटी फीस लेकर भी शायद ही कोई प्रैक्टिकल साल्युशन सुझा पाते हैं। सही साल्युशन है सामाजिक बुराइयां, टीवी पर अश्लील, अनैतिक बातों पर रोक, मनोरंजक अच्छी शिक्षा देने वाले साहित्य व टीवी प्रोग्राम्स को बढ़ावा देना और माता पिता द्वारा परिवारों में शुरू से अच्छे संस्कारों का उदाहरण बच्चों के सामने रखा जाना।

ये भी पढ़े: शादी के बिना कितना सही है कामसूत्र को अपने जीवन में लाना...

Related Articles

Popular Posts

Photo Gallery

Images for fb1
fb1

STAY CONNECTED