उमेश कुमार साहू
दिलेर समाचार, फागुन मा-प्रारंभ होते ही शी-ऋतु के पश्चात् पतझड़ी वनों में पलाश के पत्ते रहि-पेड़ों पर लाल-पीले भगवा फूल लगने आरंभ हो जाते हैं और चैत्रा मा-अं-आते-आते चरम सीमा तक खिल जाते हैं जो दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो जंगल में धधक रही आग की ज्वाला हो।
धार्मिक ग्रंथों में पलाश को पीपल की भांति ही पवित्रा बताया गया है। महर्षि चरक ने पलाश की समिधाओं को हवन सामग्री के रूप में प्रयोग किए जाने का उल्लेख अपनी संहिता में किया है। मनुस्मृति में भी ब्राह्यणों को पलाश की लाठी धारण करने का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेदिक औषधि शास्त्रों में भी पलाश के लाल, पीले, नीले व सफेद फूल का उल्लेख मिलता है।
अधिकांशतः लाल फूल ही देखने में आते हैं लेकिन सफेद रंग के फूल वाले वृक्ष को सर्वाधिक गुण वाला माना जाता है। इ-प्रकार स्पष्ट है कि पलाश मात्रा फूल या वृ़क्ष न होकर औषधीय गुणों की खान है। औषधीय गुणों के आधार पर पलाश के वृक्ष के सभी अंगों जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल आदि का विवरण प्रस्तु-है-
जड़ (मूल)- पलाश मूल का उपयोग ग्रीष्म ऋतु में उठने वाली फुंसियों पर लेप के रूप में किया जाता है।
तना- पलाश का तना तासीर में सारक, गरम, कसैला, चटपटा तथा कड़वा होता है, तथा यह अग्नि प्रदीपक, टूटी हड्डी को जोड़ने वाला, संग्रहणी, बवासीर, कृमि, योनि रोग आदि रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
पत्ते- गांठ एवं पुरानी चोटों की सिंकाई में पलाश के पुराने पत्तों को प्रयोग में लाते हैं। कृमि व वा-नाशक तथा हाथी व भैसों के चारे के रूप में एवं दोना-पत्तल उद्योग में इसके पत्तों का उपयोग करते हैं। गर्मी के मौसम में लू लगने पर इसके पत्तों के र-को हाथ-पैरों पर लगाया जाता है। बड़े पत्ते वाले पलाश के वृ़क्ष के लिए राजनिघंटु में लिखा है-
‘‘हस्तिकर्णः परंवृष्योमेधायुर्बल वर्द्धनः‘‘
अर्थात् हस्तिकर्ण पलाश अत्यं-वीर्यवर्धक तथा मेधा, आयु और बलवर्धक है।
फूल- पलाश के फूल स्वाद में कड़वे, कसैले एवं चिपचिपे रसदार होते हैं तथा ये मूत्राकृच्छ, शीतल, कुष्ठ रोगनाशक, मलरोधक, गर्म, मासिक स्राव सुचारू करने, गर्भवती स्त्राी के दस्तों, अतिसार एवं अजीर्ण आदि रोगों में अलग-अलग प्रकार तथा अनुपा-में उपयोग किए जाते हैं।
फल- बीज फलियों से निकले पलाश के बीजों को ढाक का पन्ना कहा जाता है। इनका रंग लाल, काला मिश्रि-भूरा होता है तथा ये आकार में गोल व चपटे होते हैं। पलाश के बीजों की औषधिक तासीर, हल्के गर्म, पचने में चरपरे, रुखे होते हैं तथा ये गुल्म, उदर, दाद, बवासीर, कृमि, वात, कफ, त्वचा रोग आदि पर उपयोग करते हैं।
अर्क- पलाश की जड़ का स्वर-नेत्राच्छाया, रतौंधी, नेत्रा एवं कृमि रोगों को दूर करने वाला है।
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