विनोद बब्बर
चीन का इतिहास मक्कारी और धूर्तता के काले अध्यायों से भरा है। इस बार भी वार्ता के बाद पीछे हटने के नाम पर किये नाटक में उसने आगे बढ़ने का प्रयास किया जिससे हिंसक झड़प हुई जिसमें हमारे 20 जवान शहीद हो गए हैं। हमारे जवानों द्वारा जवाबी कार्यवाही में अनेक चीनी सैनिक भी मारे गये है। चीन की इस नापाक हरकत पर सारे देश में जबरदस्त आक्रोश है।
ऐसे में प्रधानमंत्राी का कथन है, ‘हमने हमेशा पड़ोसियों के साथ मिलकर काम करने, उनके विकास और कल्याण की कामना की है। हमारा हमेशा प्रयास रहा है कि मतभेद विवाद न बने। त्याग, तपस्या, विक्रम और वीरता हमारे चरित्रा का हिस्सा है। देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करने से हमें कोई भी रोक नहीं सकता। इसमें किसी को भी भ्रम नहीं होना चाहिए।
भारत शांति चाहता है लेकिन उकसाने पर हर हाल में यथोचित जवाब देने में हम सक्षम हंै।’ स्पष्ट है, सेना अपने ढंग से प्रतिकार करेगी लेकिन क्या सारी जिम्मेदारी सेना की है। एक नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य सोशल मीडिया पर आक्रोश प्रकट करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यथा संभव कुछ ऐसा अवश्य करना चाहिए जिससे चीन को आर्थिक मोर्चे पर चोट पहुंचे।
पूरे विश्व को कोरोना संकट में डालने के मुद्दे पर चीन घिरा हुआ है लेकिन अपनी घटिया हरकतों से बाज नहीं आ रहा।1962 से लगातार चीन अपनी चिर पुरातन षड्यंत्राकारी युद्ध नीति ‘पहले मित्रा बनाओ और फिर पीठ में छुरा घोंपकर अपने हित साधो’ का अनुसरण कर रहा है। वह पड़ोस में स्थित सभी छोटे देशों को आर्थिक एवं सैन्य सहायता देकर अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहा है। यह नेपाल का दुर्भाग्य है कि वहां कम्युनिस्ट सरकार है जो चीन के इशारे पर भारत से विवाद बढ़ाने पर आमादा है जबकि नेपाली जनता इसके पक्ष में नहीं हैं। तो दूसरी ओर पाकिस्तान भी चीन की शह पाकर भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता है। जब चीन लगातार हम पर हावी होने की कोशिश कर रहा हो तो हमें उसकी समृद्धि और अपनी बर्बादी का रास्ता क्यों चुनना चाहिए?
आज हमारे बाजार चीनी सामान से अटे हुए हैं। घरेलू सामान से बच्चांे के खिलौने, बर्तन, सजावट की चीजंे, मोमबत्तियां, देवताआंे की मूर्तियां, इलेक्ट्रोनिक सामान, फोन, मोबाइल, जूते, टी शर्ट आखिर क्या नहीं है। सस्ते के चक्कर में हम चीनी षड़यंत्रा का शिकार बनते हुए अपने घरेलू उद्योग को अपने ही हाथांे नष्ट करने के दोषी हैं। सामान्य स्थिति में प्राथमिकता निजहित हो सकती है लेकिन आपातकाल में देशहित ही सर्वोपरि होता है।
दोस्ती और दुश्मनी दोनांे साथ साथ नहीं चल सकते। परिस्थितियों की मांग है कि चीन के खिलाफ कड़े आर्थिक फैसले लिए जायें। इतिहास की भूलों को दोहराने की बजाय नया इतिहास बनाने की दिशा में बढ़ना है तो ‘सस्ता सामान’ नहीं, ‘सुरक्षा और सम्मान’ हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। देश की कोटिशः जनता चीन की दादागिरी का मुंह तोड़ जबाव देना जानती है, इसलिए जरूरी है चीन निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार। यह महत्त्वपूर्ण अभियान राष्ट्रधर्म ही है। चीन की हरकतंे शत्राु वाली हैं तो उसे अनुकूल राष्ट्र की सूची से तत्काल बाहर किया जाए। सरकार जो और जब करेगी सो करेगी लेकिन इसकी शुरुआत मुझे, आपको यानी हम सबको करनी है। हम सस्ते का अपना लालच छोडं़े तो व्यापारी और सरकार घाटे का सौदा करेंगे ही क्यों।
हम भारत माता की संतान हंै तो अपनी मातृभूमि का अपमान करने वालों को बर्दाश्त करने का विचार भी हमारे मन में नहीं आ सकता। स्वदेश प्रेम हमारे लिए केवल नारा नहीं, व्यवहार है। भारतभू को कुदृृष्टि से देखने वालों को सबक सिखाना हमारा अधिकार है। हम इस या उस दल के समर्थक या विरोधी हो सकते हैं लेकिन जब राष्ट्रहित का प्रश्न हो तो केवल भारतीय हैं। आपसी मतभेद, असहमति बाद में, अभी एक स्वर में केवल शत्राु का प्रतिकार, उसे हर मोर्चे पर मात देने का संकल्प।
हमारी सेना विश्व की श्रेष्ठ सेनाओं में है। वह अतिक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देगी ही परंतु हमें भी पीछे क्यों रहना चाहिए। आइए संकल्प ले- ‘अब किसी कीमत पर नहीं लेंगे चीन का बना सामान क्योंकि हमारी प्राथमिकता है भारत की सुरक्षा और सम्मान।’
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