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ऐसे बनती जा रही है युवा पीढ़ी वासना की गुलाम…!

Posted at: Sep 22 , 2017 by Dilersamachar 9851

दिलेर समाचार,भारत में वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर युवा पीढ़ी जीवन बर्वाद कर रही है। पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति में मूल अंतर यह है कि पाश्चात्य संस्कृति मेंजीवन का उद्देश्य मात्र भौतिक सुख पाना मानती है जबकि भारतीय संस्कृति में मानवजीवन का उद्देश्य चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष को माना गया है। इन चार पुरुषार्थ को क्रमश?पालन करने से आत्म कल्याण होगा। ऐसा सत्य मार्गबताया गया है।पाश्चात्य संस्कृति कहती है भौतिक सुख स्त्री पुरुष के संबंध से मिलता है। जब तक स्त्री सुख दे तब तक साथ रखो ,फिर बदल दो। यही कारण है कि पाश्चात्य लोग जीवन में अनेक स्त्रियों से संबंध मात्र वासना की पूर्ति के लिये बनाते है। उन लोगों को स्त्री के मानसिक शारीरिक आत्मिक स्वास्थ्य से कोई सरोकार नही रहता है। इसका दुष्प्रभाव यह होता है स्त्री की हालत दयनीय हो जाती है। स्त्री रुग्ण दुखी अशांत बनी रहती है। विडंबना यहाँ तक है कि बच्चे को जन्म देने या धोके से जन्मे बच्चे को रखने का निर्णय का अधिकार भी स्त्री के पास नही होता। उसकी ममता को सुख में बाधा समझकर रोंध दिया जाता है।
भारतीय संस्कृति हमे पावनता का संदेह देती है। जिन पुरुषार्थ का उल्लेख किया है उनमें मुख्य उद्देश्य मोक्ष पुरुषार्थ है। यह भी उल्लेख भारतीय संस्कृति में गुरूजनों ने किया है यदि मुख्य पुरुषार्थ को करने की सीधी क्षमता न हो तो क्रमश? चार पुरुषार्थ करके जीवन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है, ,किन्तु अर्थ और काम पुरुषार्थ के पूर्व धर्म पुरुषार्थ करना अनिवार्य माना गया है तभी अर्थ काम संस्कारित होकर पुरुषार्थ का स्वरूप ग्रहण करते है। भारतीय संस्कृति में स्त्री पुरुषों को अपनी अपनी भूमिका के अनुरूप चारों पुरुषार्थ करने की राह दिखायी गई है।
वर्तमान में युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर भारतीय संस्कार एवं संस्कृति को भूल गई है। जैनाचार्य विद्या सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि प्रमाण सागर जी महाराज का कहना है युवा पीढ़ी स्नातकोत्तर कक्षाओं में सहशिक्षा से तेजी से भटक रही है। दूरगामी दुष्प्रभाव को नजरअंदाज करके आपसी शारीरिक संबंध बना लेते है। माता पिता को उनके वैवाहिक निर्णय को स्वीकार करने मजबूर किया जाता है। सहमति नही देते है तो भागकर विवाह कर लेते है। प्रेम विवाह में व्यवधान आने पर आत्म हत्या कर जीवन लीला ही समाप्त कर देते है।  पाश्चात्य संस्कृति का ही परिणाम है आज भारत में एक नही हजारों लाखों की संख्या में प्रेमी युगल लिव एंड रिलेशनशिप के नाम पर बिना विवाह के ही पति पत्नी के रूप में रह रहे है। प्रेम प्रसंग में प्रगाढ़ता आने पर आये दिन अन्तर्जातीय विवाह हो रहे है। प्रेम विवाह का दुष्प्रभाव यह है कि आपसी दाम्पत्य जीवन ज्यादा समय नही चलता तलाक के बाद संबंध विच्छेद होने पर पति पत्नी दोनों का ही जीवन बर्वाद हो जाता है।
मैं गत दिनांक 4 सितम्बर 16  को नागपुर में सेमिनरी हिल स्थित वनबाला पर्यटक रेल से वन विहार का भ्रमण कर रहा था। मैंने वहाँ देखा लगभग 4 किमी क्षेत्र में फैले वन विहार में सैंकड़ों की संख्या में प्रेमी युगल प्रेमालाप कर रहे थे। मैंनें वन विहार के कर्मचारियों से कहा हम वन विहार का भ्रमण करना चाहते है। उनका स्पष्ट कहना था आपने रेल से वन विहार का भ्रमण कर लिया आपको हमारी विनम्र सलाह है आप पैदल भ्रमण का विचार त्याग दीजिये। अगर आप जिद करके भ्रमण को जायेंगे तो वहाँ प्रेमी युगल उनके स्वच्छंद प्रेमालाप में अनावश्यक दखल मानकर आपसे झगड़ा करने लगेंगे आस पास बैठे प्रेमी युगल उनका साथ देने आजायेंगे।  हमारे देश में गार्डन एवं पार्कों का निर्माण नगर निगम नगर पालिकाओं ने इस उद्देश्य से कराया है कि समाज में हर उम्र या वर्ग का व्यक्ति उसका लाभ उठाये। मगर आज युवा पीढ़ी ने अपनी वासना की पूर्ति के लिये इनको प्रेम प्रसंग स्थल अथवा लवर्स पार्इंट बना कर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है।

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