दिलेर समाचार, आजकल हर्बल ट्रीटमेंट का बोलबाला है। जहां तहां हर्बल चिकित्सा, हर्बल सौंदर्योपचार का विज्ञापन देखने को मिल जाता है। आयुर्वेद से उत्पन्न गेहूं रस चिकित्सा विधि भी एक ऐसी ही उपचार विधि है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति घर बैठे ही लाभ उठा सकता है। डॉ. विगमोर के अनुसार अगर कुछ दिनों तक नियमित गेहूं रस का प्रयोग किया जाये तो भयंकर से भयंकर रोगों तक से निजात पायी जा सकती है जैसे
गेहूं के पौधे के रस का पान या सेवन करने से कब्ज व्याधि दूर तो होती है, गैसीय उदर विकार भी दूर होता है।
हूं रस का सेवन करने से रक्त का शुद्धिकरण भी होता है। परिणामत: रक्त विकार के कारण उत्पन्न फोड़े फुंसी तो दूर होते ही हैं, चेहरा भी साफ तथा लावण्ययुक्त हो जाता है।
– गेहूं रस का सेवन करने से शरीर में शक्तिवर्धन होता है, इसीलिए इसे हरा खून भी कहा जाता है।
– गुर्दों की क्रियाशीलता बढ़ती है और इसके सेवन से पथरी भी गल सकती है।
– दांत एवं हड्डियों की मजबूती में कारगर है।
– गेहूं रस का सेवन करने से सिरदर्द नहीं होता और तनावों से मुक्ति मिलती है।
– गेहूं रस पीने से बाल सुंदर चमकदार तो होते ही हैं, असमय पकते भी नहीं।
– गेहूं रस का सेवन करने से नेत्र विकार दूर होते हैं एवं नेत्र ज्योति भी बढ़ती है।
– इसके सेवन से स्मरण शक्ति बढ़ती है, तथा स्नायु प्रबल होते हैं।
– गेहूं रस सेवन करने वालों को रक्तचाप व हृदय रोग नहीं होते।
– गेहूं रस का पान करने से लकवा लगने की संभावना भी कम हो जाती है।
– पेट के कीड़े शरीर से बाहर निकाल दिये जाने में गेहूं रस एक सफल उपचार है
जहां गेहूं रस हमारे लिए एक कारगर एवं सफल इलाज है, वहीं इसके प्रयोग में चंद सावधानियां बरतना भी अत्यन्त आवश्यक है जैसे-
– गेहूं रस सर्वदा ताजा ही प्रयोग में लाना चाहिए। फ्रिज में रखकर कभी भी इसे इस्तेमाल नहीं करना चाहिये, क्योंकि तब यह तत्वहीन हो जाता है।
– जब भी गेहूं रस पीना हो, उसके उपयोग से आधा घंटे पहले एवं आधा घंटा बाद तक कुछ भी सेवन नहीं करना चाहिए।
– रस को धीरे-धीरे जायका लेते हुये पीना चाहिये न कि पानी की तरह गटागट पिया जाये।
– जब तक आप गेहूं रस का सेवन कर रहे होते हैं, उस अवधि में सादा एवं संतुलित भोजन ही करना चाहिये। तले हुए गरिष्ठ एवं मिर्च मसालेयुक्त भोजन से परहेज करना चाहिये।
– इस अवधि में खटाई का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
– कभी-कभी गेहूं रस का सेवन करते ही सर्दी जुकाम हो जाता है या फिर उल्टी दस्त होने लगते हैं मगर इसमें घबराने जैसी कोई बात नहीं होती। एक या दो दिन में शरीर में स्थित विकार सब विसर्जित हो जाते हैं और व्यक्ति पुन: सामान्य हो जाता है। अगर उचित समझा जाये तो इस अवधि में गेहूं रसपान की मात्रा घटाई भी जा सकती है मगर सेवन करना कदापि बंद नहीं करना चाहिये।
– अगर आप गेहूं रस बनाने के झंझट से बचना चाहते हैं तो गेहूं के पौधे का सेवन डायरेक्ट भी किया जा सकता है
गेहूं के पौधे प्राप्त करना अत्यन्त आसान है। अपने घर में 8-10 गमले अच्छे मिट्टी से भर लें। इन गमलों को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां सूर्य का प्रकाश तो रहे मगर गमलों पर धूप न पड़े। साथ ही वह स्थान हवादार भी हो।
सबसे पहले नं. 1 गमले में उत्तम प्रकार के चंद गेहूं के दाने बो देने चाहिए। इसी तरह दूसरे दिन दूसरे नं. के गमले में, तीसरे दिन तीसरे नं. के गमले में आदि। यदा कदा पानी के छींटे भी गमलों में मारते रहना चाहिये ताकि नमी भी बनी रहे। आठ या दस दिन में गेहूं के दाने अंकुरित होकर 8-10 इंच लम्बे हो जाते हैं। बस उन्हें उखाड़ कर जड़ के पास से काट लेना चाहिए।
तत्पश्चात् काटे हुये भाग को अच्छी तरह से धोकर उसे मिक्सी में पीस लेना चाहिए। फिर छलनी से छान कर रोगी को पिला दें। खाली गमले में पुन: गेहूं के दाने बो दें। इस रस को सुबह और शाम दो बार भी लिया जा सकता है।
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