दिलेर समाचार, इटावा. आज दलित राजनीति की बदौलत देश के लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संस्थापक कांशीराम (Kanshiram) की जयंती है. उनका नाम समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के गृह जिले इटावा (Etawah) में पूरे आदर भाव के साथ याद किया जाता है. इटावा के लोगों ने पहली बार कांशीराम को वर्ष 1991 के चुनाव में जितवा कर संसद की दहलीज के पार पहुंचाया था. इसी वजह से कांशीराम को भी इटावा से खासा लगाव रहा. इटावा लोकसभा क्षेत्र की अनारक्षित सीट पर हुये उस उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे. कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले, जबकि उनके निकटतम भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 22 हजार 466 मत कम मिले थे.
पंजाब के रोपड़ जिले में 15 मार्च, 1934 को जन्मे विज्ञान स्नातक कांशीराम ने दलित राजनीति की शुरूआत बामसेफ नाम के अपने कर्मचारी संगठन के जरिए की. दलित कामगारों को एक सूत्र में बांधा और निर्विवाद रूप से उनके सबसे बड़े नेता रहे. पुणे में डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में साइंटिफिक असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुके कांशीराम ने नौकरी छोड़कर दलित राजनीति का बीड़ा उठाया. दलितों को एकजुट कर उन्हें राजनीतिक ताकत बनाने का अभियान 1970 के दशक में शुरू किया. कई वर्षों के कठिन परिश्रम और प्रभावशाली संगठन क्षमता के बूते उन्होंने बसपा को सत्ता के गलियारों तक पहुंचा दिया.
बामसेफ के बाद उन्होंने दलित-शोषित मंच डीएस-फोर का गठन 1980 के दशक में किया और 1984 में बहुजन समाज पार्टी बनाकर चुनावी राजनीति में उतरे। 1990 के दशक तक आते-आते बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका हासिल कर ली. कांशीराम ने हमेशा खुलकर कहा कि उनकी पार्टी सत्ता की राजनीति करती है और उसे किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहिए, क्योंकि यह दलितों के आत्मसम्मान और आत्मबल के लिए जरूरी है.
मुलायम ने की थी मदद
मुलायम की मदद से कांशीराम ने 1991 में इटावा से लोकसभा का चुनाव जीता था, जबकि मुलायम के खास रामसिंह शाक्य जनता पार्टी से प्रत्याशी थे और उन्हें मात्र 82624 मत मिले थे. इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनमुटाव भी हुआ, लेकिन मामला फायदे-नुकसान के चलते शांत हो गया. कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई, इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला. दो जून 1995 को हुये गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढ़ी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनों दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा हो गये. वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव मे सपा बसपा ने एक बार फिर से गठजोड़ किया, लेकिन गठजोड़ का फायदा बसपा को तो मिला, सपा को इसका कोई फायदा नहीं मिला. उल्टे मायावती ने सपा के वोट बैंक छिटकने का आरोप लगा दिया जिससे तल्खी बरकरार है.
खादिम अब्बास ने दिया था नारा
नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम, बाकी राम झूठे राम, असली राम कांशीराम का भी नारा लगा. इस नारे ने राजनीतिक बिसात में खासा परिवर्तन किया. यह नारा कांशीराम के पुराने साथी रहे खादिम अब्बास ने दिया था. खादिम आज भले ही बसपा की मुख्यधारा मे न हों, लेकिन वह आज भी कांशीराम से खासे प्रभावित रहे हैं, इसीलिए बसपा से निकाले जाने के बाद आज तक किसी भी दल का हिस्सा नहीं बने हैं.
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