दिलेर समाचार, उच्च रक्तचाप आज की सदी का सबसे प्रमुख रोग है। इस बीमारी की एक यह खासियत है कि यह बढ़ने पर अपने आने की आहट तक नहीं देती। शुरू में अक्सर उसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। कुछ लोग सिरदर्द, चक्कर, धड़कन, थकान और खिन्नता की शिकायत करते हैं किन्तु ये परेशानियां इतनी आम हैं कि इन्हें ब्लडप्रेशर से सीधा जोड़ना मुनासिब नहीं होता।
अधिकतर लोगों में रक्तचाप बढ़ने की शिकायत अचानक ही होती है। बीमार होने पर डॉक्टर के पास परामर्श के लिए जाने पर या वार्षिक स्वास्थ्य परीक्षण के समय जांच होने पर पता चलता है कि रक्तचाप बढ़ा हुआ है। कुछ लोगों का इसका पता तब चलता है जब बीमारी उग्र हो चुकी होती है। रक्तचाप बढ़े रहने से उनमें तरह - तरह की जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं।
रक्तचाप के बढ़ने से कुछ रोगियों की नकसीर फूट जाती है, कुछ की सांस फूलने लगती है, कुछ की दृष्टि धुंधली हो जाती है, कुछ के गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं, कुछ को दिल का दौरा पड़ सकता है और कुछ को पक्षाघात तक हो जाता है, तब जाकर मालूम पड़ता है कि शरीर उच्च रक्तचाप के घेरे में है। इसलिए इस रोग को साइलेंट किलर की उपमा रोग विशेषज्ञों द्वारा दी गई है।
रक्तचाप बढ़ने का सबसे बड़ा खमियाजा दिल को भुगतना पड़ता है। ब्लडप्रेशर बढ़ने पर धमनियों में रक्त पम्प करने के लिए दिल को बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। जिस प्रकार वेट लिफ्टिंग करने से भुजाओं की पेशियां बलिष्ठ हो जाती हैं, उसी प्रकार बढ़ी हुई रजिस्टेंस के विरूद्ध धमनियों में रक्त पम्प करते - करते दिल की पेशियों में भी अति वृद्धि पैदा हो जाती है किंतु बलिष्ठ होने से जहां भुजाओं की ताकत बढ़ती है, इसके ठीक विपरीत दिल की पेशियों के बढ़ने से दिल पर बुरा असर पड़ता है।
उसकी ग्लूकोज एवं ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है किंतु कोरोनरी धमनियां वह मांग पूरी नहीं कर पाती जिससे उच्च रक्तचाप होने पर एंजाइना और दिल का दौरा होने का जोखिम बढ़ जाता है। कुछ वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद दिल थकने लगता है और उसकी रक्त पम्प करने की क्षमता घटने लगती है। परिणामस्वरूप थोड़ी भी शारीरिक मेहनत करने पर सांस फूलने लगती है, दिल फेल हो सकता है तथा शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने से जान तक जा सकती है।
अत्यधिक दाब के कारण धमनियों का लचीलापन नष्ट होने लग जाता है तथा वे पत्थर जैसी सख्त हो जाती हैं। खून को बढ़ने में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। धमनियों के भीतर चर्बी जमने की प्रक्रिया भी तेज हो जाती है। रक्तचाप बढ़ने से मस्तिष्क की धमनियों में भी परिवर्तन आने लगने हैं। उनमें छोटे-छोटे फफोले (एन्यूरिज्म) उठ सकते हैं। प्लेटलेट कर्णों का थक्का बनने और किसी मस्तिष्क धमनी में फंसने से मस्तिष्क के किसी भाग की रक्त आपूर्ति अचानक कट सकती है।
कभी-कभी अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से की रक्त आपूर्ति कुछ देर के लिए टूट जाती है। इससे कुछ मिनटों के लिए दिखना बंद हो जाता है, आवाज नहीं निकलती, शरीर का कोई अंग काम नहीं करता, बेहोशी आ जाती है तथा पक्षाघात भी हो सकता है। रेटिना की लघु रक्त वाहिकाएं भी रक्तचाप के बढ़े रहने से बच नहीं पाती। समय के साथ उनमें अनेक दुष्परिवर्तन आ जाते हैं। दृष्टि सिमट सकती है, धुंधली हो सकती है, कभी कभी दिखना भी बंद हो जाता है।
रक्तचाप बढ़ने से गुर्दों पर भी बुरा असर पड़ता है। गुर्दों की खून छानने के शक्ति अर्थात् उसकी इकाइयों, (ग्लाम्युरलाई), उनकी ओर खून लाने और उनसे साफ हुआ खून ले जाने वाली धमनिकाओं पर गंभीर असर पड़ता है। रक्तचाप पर अगर नियंत्राण न रखा जाए तो कुछ वर्ष बाद गुर्दे काम करना बंद कर देते है। जिन लोगों को उच्च रक्तचाप के साथ डायबिटीज भी होती है उनमें गुर्दों के ठप्प होने की दर चार गुना अधिक बढ़ जाती है।
Copyright © 2016-24. All rights reserved. Powered by Dilersamachar