नीतू गुप्ता
बच्चों का मन बहुत कोमल होता है। कई बार माता-पिता जाने अंजाने में आपस में ऐसा व्यवहार करते हैं जिनका गहरा प्रभाव बच्चों के कोमल मन पर हमेशा के लिए पड़ जाता है।
कभी-कभी तो बच्चे अपने बचपन में ही इस प्रकार का व्यवहार करते हैं कि माता-पिता भी हैरान रह जाते हैं जैसे अपने बराबर वाले बच्चों को बुली करना, अपने छोटे बहन या भाई से ईर्ष्या करना, उन्हें मानसिक पीड़ा पहुंचाना, कहना न मानना, हर बात का विरोध करना, सामान पटकना, पढ़ाई में दिल न लगना या फिर खामोश रहना। ये सब आदतें सामान्यता उन बच्चों में घर कर जाती हैं।
बच्चा यदि अपने घर में अपनी मां, दादी को मानसिक पीडि़त या शारीरिक पीडि़त होते देखता है तो वो भी सोचता है कि स्त्राी जाति को पुरूष आसानी से प्रताडि़त कर सकता है, रोब मार सकता है। कई बच्चे तो घर में आपसी मार पिटाई को देखकर इतने सहम जाते हैं कि वे अंदर ही अंदर सुलगते रहते हैं और कुछ समय पश्चात् उनका क्रोेध ज्वालामुखी बनकर फूटता है।
दांपत्य की असफलता बच्चों के मन पर विपरीत प्रभाव डालती ही है। माता-पिता के दिखावे के रिश्तों का दर्द बच्चों को झेलना पड़ता है। माता-पिता को चाहिए कि वे खुश रहें और परिवार को सुखद बनाने का हर प्रयास करें ताकि बच्चे तनावग्रस्त न रहकर खुली हवा में सांस ले सकें।
बच्चों पर होने वाले प्रभाव
जिन दंपतियों में संबंध खराब रहते हैं, अक्सर उनके बच्चों का स्वभाव या तो अंतर्मुखी होता है या बहिर्मुखी। बच्चे स्वभाव में उग्र, झगड़ालू जल्दी संयम खो देने वाले होते हैं और अंतर्मुखी बच्चे एकांतप्रिय होते है। वे खामोश, अपने आप में खोये हुए लोगों के बीच मिक्स अप नहीं होते।
अंतर्मुखी बच्चे माता-पिता को झगड़ते देख स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं। कोई भी उन्हें थोड़ी सी सहानुभूति देता है तो उन्हें अच्छा लगता है। कभी-कभी ऐसे बच्चे सुरक्षा ढूंढते हुए गलत संगत में भी फंस जाते हैं।
बहिर्मुखी बच्चे कभी भी एक जगह टिक कर नहीं बैठते और पढ़ाई में एकाग्रता नहीं बना पाते। हर समय मन में शैतानी करने की इच्छा रहती है। दूसरों को पीड़ा पहुंचाना उन्हें अच्छा लगता है।
अंतर्मुखी बच्चे शांत तो लगते हैं पर अंदर से दुःखी और उलझनों से भरे रहते हैं। अपने मन की पीड़ा किसी को नहीं बताते।
बहिर्मुखी बच्चांे की सहनशक्ति कम होती है। वे स्वभाव से स्वार्थी व डिमांडिंग बन जाते हैं। उन्हें अपनी डिमांडस पूरी करवाना आता है।
कभी-कभी ऐसे बच्चे बहुत आक्रामक हो जाते हैं और गुस्से में आकर घर तक छोड़ देते हैं।
अंतर्मुखी बच्चों का मानसिक विकास भी ठीक से नहीं हो पाता क्योंकि वे व्यवहार से शर्मीले और पीछे-पीछे रहने वाले होते हैं। अपनी पढ़ाई की समस्या भी किसी से डिस्कस नहीं करते।
अंतर्मुखी बच्चों का समाज, रिश्तों, परिवार से विश्वास उठ जाता है। जब कभी माता-पिता में से कोई उन्हें प्यार करता है तो वो प्यार उन्हें बनावटी लगता है। उद्दंड्डी बच्चों को परिवार, समाज की आलोचना गलत कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है क्योंकि उनकी परवरिश गलत माहौल में होती है।
माता-पिता को चाहिए
माता-पिता को अपने तनाव और आपसी घृणा का प्रभाव बच्चों पर नहीं डालना चाहिए क्योंकि बच्चे सही गलत की पहचान नहीं कर पाते। उनका कोमल मन जो देखता है, वही उनके हृदय पटल पर लिखा जाता है।
माता-पिता को बच्चों के मासूम बचपन को छीनने का हक नहीं है। वे तो अपनी प्यार की निशानी के सुरक्षा कवच होते हैं, उन्हें चलना सिखाते हैं, बोलना सिखाते हैं। माता-पिता को जब भी आपसी तालमेल बिगड़ता दिखाई दे तो उन्हें तुरंत स्वयं को संभालना चाहिए। ताकि बच्चे किसी भी रूप मंे सफर न करें।
कांउसलिंग लें, किसी समझदार व्यक्ति से सलाह ले, अपनी कुछ इच्छाए दबाएं, अहम त्यागें, अपनी बगिया के फूलों को न मुरझाने दें।
बहुत छोटे बच्चे तो दर्द को समय के साथ भूल जाते हैं पर किशोर होते बच्चे तो हारमोन्स बदलाव के कारण पहले स्वयं परेशान होते हैं उस पर परिवार बिखरने की परेशानी को सहन करना बहुत असहनीय होता है।
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